आर्थिक स्वच्छता गरीबों के अधिकार को सुनिश्चित कर रही

नईदिल्ली,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि देश में डिजिटल लेनदेन से स्वच्छता और पारदर्शिता आई है जिससे भ्रष्टाचार जैसी चीजों में कमी आई है। उन्होंने कहा जिस तरह घर-घर शौचालय निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना से गरीबों की गरिमा बढ़ी है वैसे ही आर्थिक स्वच्छता गरीबों के अधिकार को सुनिश्चित कर उनका जीवन आसान बनाती है। पीएम मन की बात कार्यक्रम में बोल रहे थे। पीएम ने कहा कि आज ऐसा एक दिन है जो हम सबको याद रखना चाहिए और ये है जो भारत की परम्पराओं से बहुत सुसंगत है। सदियों से जिस परम्पराओं से हम जुड़े हैं उससे जोड़ने वाला है। ये है ‘वर्ल्ड रिवर डे’ यानी ‘विश्व नदी दिवस’।
हमारे यहाँ कहा गया है –
“पिबन्ति नद्यः, स्वय-मेव नाम्भः
अर्थात् नदियाँ अपना जल खुद नहीं पीती, बल्कि परोपकार के लिये देती हैं। हमारे लिये नदियाँ एक भौतिक वस्तु नहीं है, हमारे लिए नदी एक जीवंत इकाई है, और तभी तो, तभी तो हम, नदियों को माँ कहते हैं। हमारे कितने ही पर्व हो, त्यौहार हो, उत्सव हो, उमंग हो, ये सभी हमारी इन माताओं की गोद में ही तो होते हैं।
पीएम ने कहा आप सब जानते ही हैं – माघ का महीना आता है तो हमारे देश में बहुत लोग पूरे एक महीने माँ गंगा या किसी और नदी के किनारे कल्पवास करते हैं। अब तो ये परंपरा नहीं रही लेकिन पहले के जमाने में तो परंपरा थी कि घर में स्नान करते हैं तो भी नदियों का स्मरण करने की परंपरा आज भले लुप्त हो गई हो या कहीं बहुत अल्पमात्रा में बची हो लेकिन एक बहुत बड़ी परंपरा थी जो प्रातः में ही स्नान करते समय ही विशाल भारत की एक यात्रा करा देती थी, मानसिक यात्रा! देश के कोने-कोने से जुड़ने की प्रेरणा बन जाती थी। और वो क्या था भारत में स्नान करते समय एक श्लोक बोलने की परंपरा रही है-
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु।|
पहले हमारे घरों में परिवार के बड़े ये श्लोक बच्चों को याद करवाते थे और इससे हमारे देश में नदियों को लेकर आस्था भी पैदा होती थी। विशाल भारत का एक मानचित्र मन में अंकित हो जाता था। नदियों के प्रति जुड़ाव बनता था। जिस नदी को माँ के रूप में हम जानते हैं, देखते हैं, जीते हैं उस नदी के प्रति एक आस्था का भाव पैदा होता था। एक संस्कार प्रक्रिया थी।
साथियो, जब हम हमारे देश में नदियों की महिमा पर बात कर रहे हैं, तो स्वाभाविक रूप से हर कोई एक प्रश्न उठाएगा और प्रश्न उठाने का हक भी है और इसका जवाब देना ये हमारी जिम्मेवारी भी है। कोई भी सवाल पूछेगा कि भई आप नदी के इतने गीत गा रहे हो, नदी को माँ कह रहे हो तो ये नदी प्रदूषित क्यों हो जाती है ? हमारे शास्त्रों में तो नदियों में जरा सा प्रदूषण करने को भी गलत बताया गया है। और हमारी परम्पराएं भी ऐसी रही हैं, आप तो जानते हैं हमारे हिंदुस्तान का जो पश्चिमी हिस्सा है, खास करके गुजरात और राजस्थान, वहाँ पानी की बहुत कमी है। कई बार अकाल पड़ता है।

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