CM को धिक्कार पत्र देने धरने पर बैठे संत,पुलिस ने रोका तो बाबा महाकाल को सौंपा पत्र

उज्जैन,अखिल भारत हिंदू महासभा ने संत समाज के साथ नानाखेड़ा स्टेडियम से निकलने वाली जनआशीर्वाद यात्रा में मुख्यमंत्री को धिक्कार पत्र देने के लिए गोपाल मंदिर से पैदल मार्च निकाला। लेकिन कोट मोहल्ला चौराहे पर ही पुलिसकर्मियों ने सभी को रोक लिया। हिंदू महासभा एवं संतों द्वारा सड़क पर ही धरना दे दिया मौके पर एएसपी प्रमोद सोनकर, एसडीम, उपायुक्त नगर निगम पहुंचे तथा ज्ञापन देने को कहा, 3 बार कलेक्टर से बात कराई लेकिन न तो वे स्वयं मौके पर आए न ही कोई ठोस आश्वासन दिया तो संतों ने महासभा के साथ मुख्यमंत्री को ज्ञापन देने की बजाय बाबा महाकाल के चरणों में मुख्यमंत्री के नाम लिखा धिक्कार पत्र सौंप दिया।
अखिल भारत हिंदू महासभा प्रदेश प्रवक्ता मनीषसिंह चौहान के अनुसार महामंडलेश्वर स्वामी बैराग्यानंद गिरी एवं बाल बिहारीदास ओंकारेश्वर द्वारा शनिवार को जन आशीर्वाद का घोर विरोध करते हुए धिक्कार यात्रा निकाली। संतों का कहना है कि भाजपा धर्म का दुरूपयोग करते हुए मूल परंपराओं से हटकर घृणित कार्य कर रही है। भाजपा द्वारा धर्म का व्यापार करने पर संत द्वारा घोर विरोध करने का निर्णय लिया गया। चौहान ने बताया कि गणेश कॉलोनी के अंदर बने महामंडलेश्वर के 20 साल पुराने आश्रम को नगर निगम ने बगैर नोटिस दिये तोड़ दिया। नियम है कि बारिश में किसी का भी घर नहीं तोड़ सकते और जिस आश्रम में तोड़ा उसमें 15 साधु संत रहते थे। इस बात का विरोध भी महासभा द्वारा किया गया साथ ही चेतावनी दी कि अखिल भारत हिंदू महासभा अब स्वयं आश्रम बनाएंगे किसी में हिम्मत है तो तोड़कर दिखाए। सड़क पर बैठे संतों और महासभा पदाधिकारियों से मिलने आए अधिकारियों ने सड़क पर बैठकर चर्चा की। धरने पर प्रदेश महामंत्री जितेनसिंह ठाकुर, प्रदेश प्रवक्ता मनीष सिंह चौहान, प्रदेश कोषाध्यक्ष सुरेश पाठक, हरि माली, सोनू जायसवाल, पवन बारोलिया, राहुल मिश्रा, अजय सर, अंकित आदि उपस्थित थे। मनीषसिंह चौहान ने कहा कि सिंहस्थ महापर्व में भी भाजपा ने संतो के बीच भेदभाव करवाए। भाजपा ने संतों के बीच ऐसी विसंगतियां पैदा कर दी हैं। कौन संत बड़ा है, कौन छोटा है, ऐसा महामंडित करना, संतो के बीच भय पैदा करना, उन्हें अपना कार्यकर्ता बनाना, ऐसा घृणीत कार्य भाजपा कर रही है। इस प्रवृत्ति का संत समाज घोर विरोध करता है। संतों के द्वारा की गई मांग पर क्षिप्रा को प्रवाहमान बनाना था परंतु इस पवित्र कार्य को भी राजनैतिक लाभ बनाकर इसका दुरूपयोग किया। करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद क्षिप्रा प्रवाहमान तो दूर क्षिप्रा का जल शुध्द भी नहीं कर पाए और यह पवित्र कार्य भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। नर्मदा से क्षिप्रा को मिलाना भी एक धोखा था वहीं कान्ह नदी का नाला आज भी क्षिप्रा में मिल रहा है। नर्मदा में ही 665 नाले मिल रहे हैं। पूरा म.प्र. जानता है रेत खनन का मुखिया कौन है।
यह रही प्रमुख मांगे
समस्त मठ मंदिरों पर से शासन का कब्जा हटाया जाए, धार्मिक न्यास बनावे जिनको संचालित करने के लिए शंकराचार्य एवं अखाड़ा परिषद के माध्यम से लोकमान्यताएं एवं परंपराओं को संचालित किया जा सके। पूरे भारत वर्ष में गौचर भूमि चिन्हित कर गौशालाओं को संचालित करने की योजना बनाएं। संपूर्ण देश में गौमांस निर्यात पर प्रतिबंध हो। हिंदू देवी देवताओं के नाम पर दल बनाकर जो लोग गौसेवा नहीं करते गौमाता का व्यापार करते हैं जिनके कार्यों के विषय में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी टिप्पणियां कर चुके हैं ऐसे कृत्यों से धर्म की हानी होती है, इन पर रोक लगे।

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