जबलपुर, प्रदेश सरकार द्वारा ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण 27 प्रतिशत किये जाने को अवैधानिक करार देते हुए दायर अलग-अलग मामलों की बुधवार को एक साथ हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। एक्टिंग चीफ जस्टिस आरएस झा व जस्टिस व्हीके शुक्ला की युगलपीठ के समक्ष मामले में सरकार की ओर से कहा गया कि उक्त मामला सुको में विचाराधीन है, इसलिये मामले की सुनवाई बढ़ाई जाये, उक्त राहत देने से इंकार करते हुए न्यायालय ने सरकार को तीन सप्ताह में जवाब पेश करने के निर्देश दिये हैं।
सुको के आदेश के बावजूद लिया निर्णय
आवेदकों का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद उक्त निर्णय लेना अवैधानिक है। जिसे तत्काल प्रभाव से वापस लेना चाहिए। याचिका में सर्वोच्च न्यायालय की ९ सदस्यीय बैंच द्वारा वर्ष १९९२ में इंदिरा साहनी विरुद्ध केन्द्र सरकार के मामले में पारित आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि जातिगत आरक्षण ५० प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। तमिलनाडू व आंध्र प्रदेश में उक्त आदेश आने से पहले जातिगत आरक्षण ६९ प्रतिशत कर दिया गया था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश आने के बाद महाराष्ट्र व राजस्थान सरकार ने जातिगत आरक्षण बढ़ाकर ५० प्रतिशत से अधिक किया था। जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने अवैधानिक करार दिया था।
हस्तक्षेप आवेदन भी किया पेश
वहीं मामले में लोक सेवा अधिनियम की धारा ४ में सरकार द्वारा संशोधन किये जाने को भी चुनौती देते हुए हस्तक्षेप आवेदन दायर किया गया है। मामलों में बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान युगलपीठ के समक्ष इंटरविनर बनने के लिए एक याचिका प्रस्तुत की गयी थी। सरकार की ओर से जवाब पेश करने समय प्रदान करने का आग्रह किया गया। इंटनविनर याचिका पर सुनवाई लंबित रखते हुए युगलपीठ ने सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश देते हुए मामलों की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद निर्धारित की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी व दिनेश उपाध्याय हाजिर हुए।