पीलीभीत के बजाए मेनका इस बार करनाल से लड़ना चाहती हैं चुनाव

नई दिल्ली, केंद्र सरकार में महिला व बाल विकास मंत्री मेनका गांधी अपने परम्परागत पीलीभीत निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ने की अनइच्छुक है। इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा ने 2019 का लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया है। ऱ्बरों के मुताबिक मेनका ने पिछले सप्ताह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की थी। मेनका ने उनसे अनुरोध किया कि पीलीभीत में मौजूदा राजनीतिक स्थिति उनके अनुकूल नहीं। करनाल के मौजूदा लोकसभा सांसद अश्विनी कुमार ने इस बार करनाल से चुनाव लड़ने में अपनी असमर्थता व्यक्त की है इसलिए इस सीट से उनके नाम पर विचार किया जाए।
बताया जाता है कि अमित शाह ने मेनका से कहा कि उनके अनुरोध पर विचार किया जाएगा। शाह ने मेनका को सलाह दी कि वह राज्य के नेताओं से सलाह-मशविरा करें। बाद में मेनका ने इस्पात मंत्री चौधरी बिरेंद्र सिंह और अन्य नेताओं से मुलाकात की। यद्यपि मेनका गांधी 2014 में पीलीभीत लोकसभा सीट बड़े अंतर से जीती थीं और उनको 52 प्रतिशत वोट मिले थे। सपा और बसपा के बीच एकता और कांग्रेस के साथ उनकी अप्रत्यक्ष सहमति ने मेनका की रातों की नींद उड़ा दी है। मेनका को पिछले चुनावों में 5.46 लाख वोट मिले थे, इस तरह उनके 3 विरोधी अगर 2019 में इकट्ठे हो जाते हैं तो उनको 4.66 लाख वोट मिलेंगे इसलिए स्थिति उनके लिए सुरक्षित नहीं और अब हवा भी बदल रही है।
मौजूदा स्थिति में पीलीभीत कोई सुरक्षित सीट नहीं रही। एक अन्य महिला नेता ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने स्पष्ट तौर पर लोकसभा चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया है। पार्टी उच्च कमान चाहती है कि वह लोकसभा का चुनाव लड़ें ताकि सही संकेत दिया जाए और भाजपा सभी 25 सीटें जीतकर अपने बढिय़ा प्रदर्शन को दोहरा सके मगर उन्होंने इंकार कर दिया और दृढ़ता से कहा कि वह अपने पुत्र दुष्यंत सिंह का स्थान नहीं बदलेंगी जो पहले ही 2 बार लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। वसुंधरा ने कहा कि वह राज्य की राजनीति से बाहर नहीं जाएंगी। उन्होंने अमित शाह को एक संदेश भेजा है कि यह आप पर निर्भर है कि उनके बेटे दुष्यंत को लोकसभा का टिकट दें या न दें मगर वह जयपुर से बाहर नहीं जाएंगी। वसुंधरा के इस फैसले ने भाजपा को बड़ी दुविधा में डाल दिया है।

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