नई दिल्ली, केंद्र सरकार ने अयोध्या में विवादास्पद राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद स्थल के पास अधिग्रहण की गई ६७ एकड़ जमीन को उसके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति मांगने के लिये मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। एक नई याचिका में केंद्र ने कहा कि उसने २.७७ एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास ६७ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। याचिका में कहा कि राम जन्मभूमि न्यास (राम मंदिर निर्माण को प्रोत्साहन देने वाला ट्रस्ट) ने १९९१ में अधिग्रहित अतिरिक्त भूमि को मूल मालिकों को वापस दिए जाने की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने पहले विवादित स्थल के पास अधिग्रहण की गई ६७ एकड़ जमीन पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। केंद्र सरकार ने १९९१ में विवादित स्थल के पास की ६७ एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था।
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के २०१० आदेश के खिलाफ १४ याचिकाएं दायर की गई हैं। अदालत ने २.७७ एकड़ भूमि को तीन पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटे जाने का आदेश दिया था। अदालत ने जमीन को केंद्र सरकार के पास रखने के लिए कहा था और यह निर्देश दिया था कि जिसके पक्ष में फैसला आएगा उसे ही जमीन दी जाएगी। रामलला विराजमान की तरफ से वकील ऑन रिकॉर्ड विष्णु जैन बताया था कि दोबारा कानून लाने पर कोई रोक नहीं है लेकिन उसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
विवादित ढांचे के मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी का कहना था कि १९९३ में जब अयोध्या अधिग्रहण अधिनियम लाया गया था तब उसे अदालत में चुनौती दी गई थी। अदालत ने तब यह व्यवस्था दी थी कि अधिनियम लाकर अर्जियों को खत्म करना गैर संवैधानिक है। अर्जी पर पहले अदालत फैसला ले और तब तक जमीन केंद्र सरकार के संरक्षण में ही रहे। ताकि जिसके हक में अदालत फैसला सुनाती है सरकार जमीन को उसके सुपुर्द कर दे। उच्चतम न्यायालय ने पीठ के ५ सदस्यों में एक न्यायमूर्ति एस ए बोबडे के उपलब्ध नहीं होने के कारण राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मंगलवार (२९ जनवरी) को होने वाली सुनवाई रविवार को रद्द कर दी थी।