स्वामी स्वरुपानंद फिर द्विपीठाधीश्वर बने

जबलपुर,शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने कहा कि शंकराचार्य पद के लिए ब्रह्मचारी, सन्यासी, दंड दीक्षित और चरित्रवान होना जरुरी हैं आपराधिक या अन्य क्रियाओं में लिप्त नहीं होना चाहिए। उन्होने एक बात बडी स्पष्ट कि तीन साल पहले स्वामी विवेकानंद झोतेश्वर आये थे उन्होंने मुझे रिझाने की कोशिश कि थी उन्होंने यह मांग रखी हुई थी कि ज्योतिर्मठ में उन्हें स्वामी स्वरुपानंद का उत्तराधिकारी बना दिया जाये।
उनकी मांग नही मानी गयी इसलिए पूरा मामला न्यायालीन विवाद में चला गया। स्वामी स्वरुपानंद एक बार द्विपीठाधीश्वर होने के बाद परमंहसी आश्रम झोतेश्वर में पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। उन्होने कहा कि शंकराचार्य का पद समर्थन धर्म का सर्वोच्च पद हैं इसके लिए सनातन परंपरा और कुछ नियम तय हैं लिहाजा किसी भी आयोग्य व्यक्ति को इस पद पर पदारोहण नही किया जाता। स्वामी स्वरुपानंद जी ने कहा कि स्वामी वासुदेवानंद चाहते थे कि उन्हें वे (स्वामी स्वरुपानंद) अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते थे लेकिन उनकी मांग नहीं मानी गई वे नाराज हो गये और उन्होने हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। स्वामी वासुदेवानंद ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और वे दोतीन बार विदेश यात्रा भी कर चुके हैं। इसलिए उन्हे शंकराचार्य नहीं बनाया जा सकता
अदालत के फैसले के अनुरुप धर्ममहामंडल और विद्वत परिषद ने शंकराचार्य स्वामी स्वरुपा नंद महाराज जी को ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य पद पर आरुढ़ किया बुधवार को ज्योतिष्पीठारोहण समारोह परमहंसी आश्रम झोतेश्वर में आयोजित किया गया। इस अभिषेक अनुष्ठान का संचालन दंडी स्वामी अभिमुत्तेâश्वरानंद ने किया। काशी विद्वत परिषद, भारत धर्म महामंडल, श्रृंगेरी और पुरी मठ के प्रतिनिधि, विभिन्न अखाडों के महामण्डलेश्वर और १५० से ज्यादा संत महात्माओं के उपस्थित में स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती को आरुढ़ किया गया। पंडित धनंजय दातार की अगुवाई में अभिषेक अनुष्ठान भी हो गया। इसके साथ ही स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती पुन: द्विपीठाधीश्वर (द्वारका और ज्योतिर्मठ) शंकराचार्य हो गये हैं। इस अवसर पर दण्डी स्वामी सदानंद सरस्वती सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद, ब्रह्मचारी चैतन्य, काशी के वैदिक पंड़ित, भारत धर्म महामंडल के संत बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

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