राष्ट्र निर्माण में अधिवक्ताओं की भूमिका महत्वपूर्ण

इंदौर, मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष गिरीश गौतम ने आज कहा कि समाज में अधिवक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे राष्ट्र के स्वतंत्रता के पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भी अधिवक्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अधिवक्ताओं ने अपने ज्ञान एवं तर्को के बल पर न केवल जन जागरूकता का कार्य किया अपितु अंग्रेजों को वापिस लौटने पर भी मजबूर किया है। विधानसभाध्यक्ष अधिवक्ता परिषद मालवा प्रांत द्वारा संविधान दिवस पर आयोजित विधि व्याख्यान कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता एवं भाजपा की वरिष्ठ नेत्री स्व. सुषमा स्वराज की सुपुत्री सुश्री बांसुरी स्वराज, देवी अहिल्या विवि की कुलपति श्रीमती रेणु जैन, स्कूल आॅफ लाॅ देवी अहिल्या विवि इंदौर की विभागाध्यक्ष डाॅ. अर्चना रांका, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के क्षेत्रमंत्री विक्रम दुबे, अधिवक्ता परिषद मालवा प्रांत के प्रांत अध्यक्ष उमेश यादव के साथ ही अधिवक्ता परिषद महाकौशल प्रांत के कार्यकारिणी सदस्य एवं म प्र उच्च न्यायालय जबलपुर इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष प्रदीप सिंह एवं कई वरिष्ठ अधिवक्तागण एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
गौतम ने कहा कि अधिवक्ता अपने ज्ञान और कौशल से मेहनत करके स्वयं को तपाता है तब जाकर वह अवसर उसे प्राप्त होता है जिसमें समाज में उसका सम्मान हो। श्री गौतम ने संस्कृत की सुक्ति ‘नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने। विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेंद्रता।।‘ का उद्धरण देते हुआ कहा कि जिस प्रकार से शेर जंगल का राजा अपनी मेहनत के बल पर बनता है कोई उसका राज्याभिषेक नहीं करता है, उसी प्रकार से अधिवक्ताओं को भी अपने ज्ञान और कौशल के बल पर अपना स्थान बनाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में संस्कृति, चिंतन परंपरा और दर्शन के समुच्चय को राष्ट्र कहा गया है, जबकि पाश्चात्य दर्शन में राष्ट्र सिर्फ भौगोलिक सीमा से बंधा हुआ है। राष्ट्र की अवधारण हमारे वेदो में भी की गई है। संस्कारों से ही संस्कृति का निर्माण होता है और हमारे संस्कार हैं वसुधैव कुटुंबकम, अतिथि देवो भवः। इसीलिए हमारी संस्कृति संपूर्ण विश्व में अद्विीतीय है।

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