किसान रैली में हिंसा पर टिकैत समेत 37 किसान नेताओं पर केस दर्ज, 24 घंटे में जगह खाली करने का अल्टीमेटम

नई दिल्ली, कृषि कानूनों के विरोध में 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर रैली में हुए उपद्रव पर केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस बुधवार को एक्शन में आ गई। अब तक 200 उपद्रवियों को हिरासत में लिया जा चुका है। साथ ही हिंसा और तोडफ़ोड़ की घटनाओं पर 35 एफआईआर दर्ज की गई हैं। एक एफआईआर में 37 किसान नेताओं पर केस दर्ज किया गया है।
पुलिस ने उपद्रवियों को जानलेवा हमले और डकैती की धाराओं में आरोपी बनाया है। उधर, केंद्र सरकार ने आंदोलनकारियों को अल्टीमेटम दिया है कि 24 घंटे के अंदर धरना स्थलों को खाली कर दें। सरकार के अल्टीमेटम के बाद चिल्का बार्डर सहित कुछ अन्य जगह पर आंदोलनकारी अपना टेंट बटोरने लगे हैं।
गणतंत्र दिवस पर मचे बवाल के बाद पुलिस ने जैसे ही किसान नेताओं पर केस दर्ज करना शुरू किया, आंदोलन में फूट पड़ गई है। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने खुद को आंदोलन से अलग किया। संगठन के चीफ वीएम सिंह ने कहा कि दिल्ली में जो हंगामा और हिंसा हुई, उसकी जिम्मेदारी भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत को लेनी चाहिए। हम ऐसे किसी शख्स के साथ विरोध को आगे नहीं बढ़ा सकते, जिसकी दिशा कुछ और हो। इसके करीब 15 मिनट बाद भारतीय किसान यूनियन (भानु) ने भी प्रदर्शन खत्म करने का ऐलान कर दिया। भानुप्रताप सिंह का संगठन चिल्ला बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहा था।
जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी
पूरे मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है, जो उपद्रवियों की पहचान के लिए सीसीटीवी फुटेज खंगाल रही है। उपद्रवियों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर में किसान नेता राकेश टिकैत, बलजीत सिंह रजवाल, दर्शन पाल, राजिंदर सिंह, बूटा सिंह बुर्जगिल, जोगिंदर उमराह, योगेंद्र यादव, गौतम सिंह चढूनी, सरवन सिंह पंधेर और सतनाम पन्नू समेत 37 लोगों के नाम प्रमुख रुप से शामिल हैं। इन सभी किसान नेताओं पर ट्रैक्टर परेड के लिए तय किए गए नियम व शर्तों के उल्लंघन का आरोप है।
हिंसा में 300 जवान घायल हुए
उपद्रवियों की पहचान के लिए पुलिस सीसीटीवी फुटेज की जांच कर रही है। पुलिस का दावा है कि मंगलवार की हिंसा में 300 जवान घायल हुए हैं। एक एडिशनल डीसीपी पर तलवार से हमला किया गया।
लाल किले पर रैपिड एक्शन फोर्स तैनात
पुलिस ने सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ा दी है। यहीं से किसान आंदोलन की ज्यादातर एक्टिविटीज चल रही हैं। उधर, लाल किले पर भी सुरक्षा बढ़ाई गई है। वहां रैपिड एक्शन फोर्स तैनात की गई है। ड्रोन से भी नजर रखी जा रही है। केंद्रीय पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल ने बुधवार को लाल किले पहुंचकर नुकसान का जायजा लिया। उन्होंने अफसरों से रिपोर्ट मांगी है। प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को लाल किले में तोडफ़ोड़ की थी।
भीड़ किसान नेताओं के काबू में ही नहीं थी
पहले गाजीपुर बॉर्डर की बात करते हैं। यहां से शुरू से ही किसानों ने पुलिस के दिए रूट को फॉलो नहीं किया। किसान गाजीपुर बॉर्डर से बैरिकेड्स तोड़कर पांडव नगर, अक्षरधाम ब्रिज (नोएडा मोड), इंद्रप्रस्थ, रेलवे ब्रिज रोड होते हुए आईटीओ पुल, आईटीओ पुल से आईटीओ चौक और फिर लाल किले की तरफ गए। रैली तय समय से काफी पहले शुरू हो गई। परेड की कमान युवाओं के हाथ में आ गई थी और तय बातों का लगातार उल्लंघन हो रहा था, लेकिन वरिष्ठ किसान नेताओं ने पुलिस को इस बात का कोई इनपुट नहीं दिया कि चीजें उनके हाथ से निकल चुकी हैं और भीड़ मनमाने तरीके से आगे बढ़ रही है। पुलिस ने पांडवनगर, आईटीओ पर जब किसानों को रोकने की कोशिश की तो भी कोई वरिष्ठ किसान नेता युवाओं को समझाने वाला नहीं था।
युवाओं ने कब्जा लिया था आंदोलन
सिंघु बॉर्डर पर 25 जनवरी की रात से ही किसान संयुक्त मोर्चे के मंच पर युवाओं का कब्जा था। वहां खुलेआम नारे लग रहे थे कि परेड तय रूट पर नहीं, रिंग रोड पर करेंगे, लेकिन वरिष्ठ नेताओं ने न तो इसे रोका और न ही पुलिस को इस बात की सूचना दी। जो लोग किसानों के जत्थों के आगे थे। वे नए चेहरे थे, इनकी पुलिस के साथ कोई ट्यूनिंग नहीं थी। जब भीड़ हिंसक होने लगी तो मौके पर पुलिस अधिकारी किससे बात करें, समझ नहीं पा रहे थे। किसान आंदोलन के जाने-पहचाने चेहरे मौके पर नजर ही नहीं आए। टीकरी से निकली परेड काफी दूर तक रूट पर रही, लेकिन हिंसा की खबरें आने के बाद नांगलोई में रूट तोड़ दिया गया और पुलिस को खदेड़ दिया गया। किसानों के जो वॉलंटियर्स रूट पर तैनात थे, पुलिस उनके मार्फत बात कर रही थी, लेकिन उग्र युवाओं ने उनकी बात नहीं सुनी।
पुलिस के पास संसाधन भी कम थे, गलतियां भी हुईं
पुलिस से सबसे बड़ी गलती यह हुई कि ज्यादातर फोर्स उन रूट्स पर तैनात किया गया जहां से परेड निकलने की बात तय हुई थी। इसके अलावा गणतंत्र दिवस के समारोह में पुलिस का बड़ा हिस्सा तैनात था। इसका नतीजा यह हुआ कि जिन पॉइंट्स पर किसानों ने रूट तोड़ा, वहां पुलिस उन्हें नहीं रोक पाई, क्योंकि भीड़ हजारों की संख्या में थी और फोर्स कम थी। जब तक दूसरी जगहों से पुलिस दस्ते आए तब तक कई जगह बवाल हो चुका था। 25 को तीनों बॉर्डर पर जो माहौल था, उससे साफ लग रहा था कि युवा रूट तोड़कर दिल्ली में घुसने की कोशिश करेंगे, लेकिन पुलिस की ओर से ऐसी स्थिति से निपटने की तैयारी बहुत कमजोर थी। उदाहरण के लिए पुलिस ने गाजीपुर से रूट तोड़कर निकले किसानों को पांडवनगर में रोकने की कोशिश की, लेकिन भीड़ के सामने पुलिस की टीम ज्यादा देर नहीं ठहर पाई। अगर पांडवनगर में पर्याप्त फोर्स होता तो किसानों को यहां रोका जा सकता था। इससे किसान आईटीओ नहीं पहुंच पाते तो वहां जो भारी हिंसा और तोडफ़ोड़ हुई वह न होती। किसानों से भिडंत में पुलिस के पास संख्या के साथ-साथ संसाधनों की भी कमी साफ नजर आई। सीमेंट के हैवी बैरिकेड्स की संख्या कम थी। जो बैरीकेड लगे थे किसानों के ट्रैक्टरों को उन्हें तोडऩे में ज्यादा वक्त नहीं लगा। तेज रफ्तार से भागते ट्रैक्टरों को रोकने के लिए पुलिस की गाडिय़ां नाकाफी थीं। हैवी कंटेनरों की संख्या भी पुलिस के पास कम थी। कुछ बैरिकेड पर इन्हें लगाया गया, लेकिन किसानों ने अपनी भारी क्रेनों से हटा दिया। पुलिस एक समय इस कदर लाचार थी कि पांडवनगर में पुलिस की क्रेन को भीड़ अपने साथ लेकर चली गई। इसे करीब 3 किलोमीटर आगे ले जाकर छोड़ा गया। पुलिस दस्ते को लेकर आई बस को भी किसान साथ में लेकर चले गए। पुलिस अधिकारी भी मानते हैं कि इतनी संख्या में ट्रैक्टरों को रोकने का दिल्ली पुलिस के पास ज्यादा अनुभव भी नहीं था। इससे भी काफी जगह चूक हुई।
अभय चौटाला ने छोड़ी विधानसभा की सदस्यता
केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के विरोध में और किसानों के समर्थन में इनेलो विधायक अभय चौटाला ने विधानसभा छोड़ दी है। बुधवार को उन्होंने अपना इस्तीफा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता को सौंप दिया। अभय चौटाला इनेलो से एकमात्र विधायक थे और इस्तीफा देने ट्रैक्टर पर विधानसभा भवन पहुंचे थे।

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