पराली को खाद बनाने के काम आने वाले कैप्सूल पूसा डी-कंपोजर का दाम 5 गुना तक बढ़ा

नई दिल्ली, पराली निस्तारण के लिए बनाए गए पूसा डी कम्पोज़र का रेट पिछले साल के मुकाबले 5 गुना बढ़ा दिया गया है। जिस समस्या को लेकर इतनी बहस जारी है उसके लिए भी कृषि मंत्रालय संजीदगी नहीं दिखा रहा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने 2019 में इसका रेट 20 रुपए रखा था लेकिन इस बार यह 100 रुपए का मिल रहा है। राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य बिनोद आनंद का कहना है कि सरकार पराली को लेकर इतनी चिंतित है तो उसे डी कम्पोज़र कैप्सूल फ्री में देना चाहिए था, लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है। बताया गया है कि आईसीएआर ने इसका काम एक निजी कंपनी को दे दिया है, जिसकी वजह से दाम पांच गुना बढ़ गया है। यहां तक कि कृषि विज्ञान केंद्रों को भी पुराने रेट पर नहीं मिल रहा। ऐसे में पर्यावरण पर सरकार की गंभीरता को लेकर सवाल उठ रहा है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पराली की बढ़ती समस्या का समाधान खोजा है।इस साल केजरीवाल सरकार ने भी इसका इस्तेमाल करके देखा है। पूसा के कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके घोल के छिड़काव से पराली खाद बन जाएगी। वैज्ञानिकों की एक टीम पिछले डेढ़ दशक से इस काम में जुटी थी। इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। उल्टे इसके इस्तेमाल से पराली सड़कर खाद बन जाती है। यह खेत की नमी भी देर तक बनाए रखती है। इससे मित्र कीट बढ़ते हैं। पराली जलाने से किसानों को नुकसान है। इससे जो हीट निकलती है उसकी वजह से मित्र कीट खत्म हो जाते हैं। खेत की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है। इसे किसानों को बताने की जरूरत है। वे कहते हैं-“बृहस्पतिवार से मैं खुद पानीपत, सोनीपत, रोहतक, जींद और करनाल में किसानों को जागरूक करने जाउंगा।”
प्लांट प्रोटक्शन के प्रोफेसर आईके कुशवाहा का कहना है कि यह पराली खत्म करने का रामबाण ईलाज है। इस कैप्सूल में फसलों के मित्र फंगस होते हैं। जो एक तरफ पराली को सड़ाते हैं तो दूसरी ओर खेत को उपजाऊ बनाते हैं। इसका हमने फील्ड में इस्तेमाल करवाया है। प्रदूषण की इतनी बड़ी समस्या को कम करने वाली यह कमाल की खोज है। बता दें ‎कि पराली दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण संकट का एक बड़ा कारण बनकर उभरी है। नवम्बर में यहां के वायु प्रदूषण में इसका योगदान औसतन 25 फीसदी तक रिकॉर्ड किया गया है।

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