कहीं साईं जन्मस्थान का विवाद, शिरडी मंदिर की कमाई तो नहीं है वजह?

अहमदनगर, साईंबाबा के भक्तों के बीच इन दिनों उनके जन्मस्थान को लेकर विवाद छिड़ा है। पिछले दिनों सीएम उद्धव ठाकरे ने पाथरी को साईं का जन्मस्थान बताकर विकास के लिए 100 करोड़ रुपये की राशि का ऐलान कर दिया। उनके ऐसा कहते हैं कि शिरडी के साईं भक्त नाराज हो गए और उन्होंने अनिश्चितकालीन बंद का ऐलान कर दिया। महाराष्ट्र सीएम की अपील के बाद बंद वापस तो ले लिया गया लेकिन विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है।
शिरडी न सिर्फ आस्था बल्कि राजस्व के हिसाब से भी काफी महत्वपूर्ण मंदिर है। शिरडी अपने अकूत खजाने के लिहाज से भारत का तीसरा सबसे अमीर मंदिर माना जाता है। यहां चढ़ावे में श्रद्धालु सोना चांदी तक भेंट करते हैं। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले स्थित शिरडी स्थित साईंबाबा मंदिर का दानपात्र कभी खाली नहीं होता। श्री साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट की 2017-18 की ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, मंदिर की कुल संपत्ति 2693 करोड़ 69 लाख रुपये है। साईं बाबा के भक्तों का पूरे साल शिरडी में जमावड़ा लगता है। कुछ भक्त हर दिन मंदिर दर्शन के लिए आते हैं। 2019 में हर दिन मंदिर में औसतन 78.63 लाख रुपये का चढ़ावा चढ़ाया गया। पिछले साल 1 जनवरी से 31 दिसंबर तक मंदिर के दानपात्र को 287 करोड़ रुपये का चढ़ावा प्राप्त हुआ।
2018-19 के आंकड़ों के अनुसार, शिरडी साईंबाबा संस्थान ट्रस्ट के पास 2,237 करोड़ रुपये का निवेश है। 23 दिसंबर 2019 से 2 जनवरी 2020 तक 11 दिन में शिरडी मंदिर में सबसे अधिक करीब 8.23 लाख श्रद्धालु आए जिन्होंने 17.42 करोड़ रुपये का चढ़ावा चढ़ाया। मुंबई के अलावा महाराष्ट्र में सबसे अधिक पर्यटक शिरडी का दौरा करते हैं। साईं की 100 वीं पुण्यतिथि से पहले 2017 में यहां एयरपोर्ट का भी उद्घाटन हुआ। यहां कई प्रसिद्ध होटल जैसे हिल्टन भी मौजूद है। साईं जन्मभूमि के मुद्दे पर शिरडी बनाम पाथरी के विवाद को लेकर सीएम उद्धव ठाकरे ने सोमवार को मंत्रालय में सभी पक्षों की बैठक बुलाई है। शिरडी ग्रामसभा की हुई सभा में फैसला लिया गया कि अगर सीएम के साथ बैठक में विवाद का हल नहीं निकला तो बंद फिर से शुरू किया जाएगा। बता दें कि परभणी जिले का पाथरी शिरडी से करीब 275 किलोमीटर दूर स्थित है। ठाकरे ने इसे साईं की जन्मभूमि बताते हुए विकास राशि का ऐलान कर दिया। यूं तो साईं के जन्म को लेकर साफ-साफ जानकारी किसी को नहीं है, लेकिन कहा जाता है कि वह शिरडी आकर बस गए और यहीं के होकर रह गए। इसके बाद से शिरडी की पहचान भी साईं से बन गई।

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