भोपाल, 35 हजार करोड़ रुपए के केन-बेतवा प्रोजेक्ट शुरू होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकारों के बीच लंबे समय से चल रहा विवाद अंतिम दौर में है। दोनों सरकारें इस परियोजना को लेकर समझौते के लिए तैयार हो गई हैं और दो माह के भीतर इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी। सूखा प्रभावित बुंदेलखंड क्षेत्र में सिंचाई और पीने का पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह परियोजना बनाई गई है। 35 हजार करोड़ की लागत वाली केन-बेतवा परियोजना को शुरू करने के लिए कमलनाथ सरकार का रुख सकारात्मक है। इसी के चलते कांग्रेस सरकार ने विकास के लिए बीच का रास्ता अपनाने का निर्णय लिया है। इससे दोनों राज्यों मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश को फायदा होगा। बताया जाता है कि पिछले दो माह में दो बार दोनों राज्यों के मुख्यसचिव और जलसंसाधन विभाग के अधिकारियों की बैठक हो चुकी है। एक बैठक प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा और एक बैठक भारत सरकार के सचिव जलसंसाधन यूपी सिंह के साथ हो चुकी है। माना जा रहा है कि बुंदेलखंड की महात्वाकांक्षी केन- बेतवा लिंक परियोजना की वर्ष 2019 में दोनों राज्यों के बीच एमओयू के साथ भूमिपूजन भी हो जाएगा। इस प्रोजेक्ट को भारत सरकार ने राष्ट्रीय प्रोजेक्ट घोषित किया है, इस कारण निर्माण की 90 फीसदी राशि भारत सरकार देगी। प्रोजेक्ट से मप्र के साथ ही उप्र के बुंदेलखंड क्षेत्र को लाभ मिलेगा। परियोजना के लिए जरूरी पर्यावरण और वन विभाग की सभी स्वीकृतियां मिल चुकी हैं।
यह काम किया जाना है
कहा जा रहा है कि केन नदी पर अंग्रेज सरकार के दौर में बनाया गया गंगऊ बांध बेकार हो चुका है। इसी बांध के एक किलोमीटर अपर रीजन में लिंक परियोजना के तहत ढोडऩ गांव में बांध का निर्माण होगा। यहीं पर बिजली उत्पादन के लिए दो इकाइयां स्थापित की जाएंगी। ढोडऩ बांध से मुख्य नहर निकलेगी जो छतरपुर जिले के कई क्षेत्रों से गुजरते हुए टीकमगढ़ जिले के पलेरा, जतारा क्षेत्र से गुजरकर झांसी जिले के बरुआसागर के पास बेतवा नदी के हजारों किलोमीटर एरिया की प्यास बुझाने का काम होगा।
2005 में किया गया था समझौता
परियोजना को धरातल पर लाने के लिए मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच 2005 में ही समझौता हुआ था लेकिन विभिन्न अड़चनों के कारण इसे अब तक नहीं शुरू किया जा सका है। जिनमें पन्ना टाइगर रिजर्व, पर्यावरण मंजूरी, राज्यों के बीच विवाद, फसलों के वर्तमान पैटर्न पर पडऩे वाला प्रभाव आदि शामिल हैं। अब यह बताया जा रहा है कि दोनों राज्यों के बीच जल्द ही नए सिरे से एमओयू होने वाला है।
यह है विवाद की वजह
विवाद की मुख्य वजह मध्य प्रदेश द्वारा योजना के दोनों फेजों को एक साथ जोड़े जाने की मांग और उत्तरप्रदेश द्वारा गैर वर्षा काल यानि खरीफ की फसल के लिये अधिक जल की मांग थी। मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश के बीच नदियों को जोडऩे के लिये हुए पुराने समझौते के मुताबिक मध्य प्रदेश को 2650 मिलियन यूबिक मीटर (एमसीएम) और उत्तरप्रदेश को 1700 एमसीएम पानी दिया जाना था। लेकिन उत्तर प्रदेश, खरीफ फसल के लिए 935 एमसीएम अतिरिक्त पानी मांग रहा है जिसे मध्य प्रदेश की सरकार मानने से इंकार कर रही थी। मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश को इसके लिए 750 एमसीएम से ज्यादा पानी नहीं देना चाह रहा है। परंतु केंद्र सरकार की मध्यस्थता के बाद दोनों राज्यों में सहमति बन गई है।