भोपाल,मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित पत्रकारिता के एकमात्र शैक्षणिक संस्थान माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में विधानसभा चुनाव के बाद शैक्षिणक सत्र में हुए कई बदलावों के कारण विद्यार्थियों के कामकाज प्रभवित होने लगा है। विवि प्रशासन ने स्नातक के लिए प्रवेश पर रोक लगा दी है इसके बाद भी स्नातकोत्तर विषयों में प्रवेश लेने के वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। प्रति सीट प्रवेश लेने वालों का अनुपात पिछले वर्ष के 3.82 से बढ़कर 4.88 हुआ है। मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार ने आते ही जिस तरह से अपनी प्राथमिकताओं में पत्रकारिता विश्वविद्यालय को रखा और एक पत्रकार को वहां का कुलपति नियुक्त किया तभी से यह स्पष्ट था कि इस विश्वविद्यालय में आने वाले समय में विचारधारा की लड़ाई से आगे जाकर भी बहुत कुछ होने वाला है। विश्वविद्यालय को एक विचारधारा विशेष का केंद्र बना कर जिस तरह से कार्यकर्ताओं की नियुक्ति की गई और अनुषांगिक संगठनों को लाखों रुपये दिए गए उस पर कांग्रेस सरकार की नजर पडऩा लाजि़मी था।
नए कुलपति बनने से हुए कई बदलाव
दीपक तिवारी के कुलपति बनने के बाद बहुत से परिवर्तन हुए है। जिनमें सभी कोर्स के पाठ्यक्रम को बदलना मुख्य बदलाव है। पाठ्यक्रम के बदलाव को लेकर विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक ना केवल उत्साहित थे बल्कि उन्होंने तीन महीने के कम समय में एक गुणवत्तापूर्ण अंतरराष्ट्रीय स्तर का पाठ्यक्रम तैयार करवाने में सफल रहे हैं। कहने को तो पत्रकार कुलपति ने बहुत किए लेकिन विश्विद्यालय की बिगड़ी छवि को कैसे ठीक नहीं कर सके। नए सत्र में बढ़े हुए प्रवेश आवेदनों ने उनका काम आसान कर दिया।
पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा आवेदन
उम्मीद की जा रही थी कि ऐसे समय जब यह माना जा रहा था कि विश्वविद्यालय की छवि ईओडब्ल्यू की जांच के कारण खराब हुई है उससे नए छात्र यहां एडमिशन लेने में संकोच करेंगे। लेकिन सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालय में पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा ऐडमिशन फॉर्म मिले है। इसे देख ऐसा लग रहा है कि प्रवेश के लिए आवेदन कर रहे छात्रों और उनके माता-पिता को विश्वविद्यालय में हो रहे परिवर्तनों से खुश हैं।
सर्वाधिक विवादित कुलपति रहे कुठियाला
विश्वविद्यालय में अब तक का सबसे ज्यादा विवादास्पद समय, दस सालों तक एक-छत्र राज्य चलाने वाले आरएसएस के नुमाइंदे और स्वयंसेवक प्रोफेसर बृजकिशोर कुठियाला का रहा। संघ से जुड़े होने के कारण कुठियाला को एंथ्रोपोलॉजी का प्रोफेसर होने के बावजूद पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया था।