मोबाइल के कारण बच्चों और किशोरों में बढ़ रही थकान

नई दिल्ली,मोबाइल का अघिक उपयोग बच्चों को बीमार बना रहा है। यहां तक कि बच्चे अकसर थके-थके नजर आते हैं, नींद कम होने के साथ ही उनकी उनकी दिनचर्या भी प्रभावित हो रही है। इस प्रकार के प्रभाव को तकनीकी भाषा में (टेक्नोफेरेंस) कहा जाता है। वहीं एक अध्ययन में टेक्नोफेरेंस से प्रभावित बच्चों की तादाद बढ़ती हुई पायी गयी है।
इसके साथ ही यह भी पाया गया कि स्मार्ट फोन और कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से किशोर अवसाद के शिकार होते जा रहे हैं यहां तक कि खुदकुशी भी कर रहे हैं।
इस अध्ययन में के परिणामें के अनुसार लड़कों के मुकाबले लड़कियां अवसाद का ज्यादा शिकार होती हैं। इतना ही नहीं बल्कि साल 2010 से लेकर 2015 तक, 13 से 18 की उम्र वाली लड़कियों में आत्महत्या की पृवत्ति 65 फीसदी तक बढ़ी है।
साथ ही खुदकुशी के बारे में सोचने, खुदकुशी का प्रयास करने, खुदकुशी की योजना बनान वाली लड़कियों कि संख्या में पिछले कुछ सालों में 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है जबकि अवसाद में आने वाली किशोरियों की संख्या 58 फीसदी तक देखी गई हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया है कि पिछले 5 सालों में किशोरों की जीवनशैली में बहुत हैरान कर देने वाला बदलाव आया है। आजकल किशोर अपना ज्यादा समय आउटडोर एक्टिविटी के बजाए स्मार्ट फोन और इंटरनेट पर गुजारते हैं। डिजिटल डिवाइस के नकारात्मक असर के कारण टीनेजर्स मानसिक तनाव का भी शिकार होते जा रहे हैं।
साथ ही अध्ययन की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि जो टीनेजर्स अपना ज्यादा समय आउटडोर गेम्स, सोशल इंटरेक्शन, पढ़ाई, व्यायाम में लगाते हैं, वो लोग कम ही अवसाद का शिकार होते हैं।
बच्चे के इंटरनेट उपयोग पर रखें नजर
अगर आप भी इस बात पर ध्यान नहीं देते हैं कि आपका बच्चा इंटरनेट पर क्या देखता है तो बड़ी गलती कर रहे हैं.
इंटरनेट के उपयोग को लेकर भारत से आने वाले आंकड़े काफी हैरान करने वाले हैं। एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि 60 फीसदी माता-पिता अपने बच्चों द्वारा देखे जाने वाले ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी नहीं करते, जो काफी चिंताजनक है। यह सर्वे ऑनलाइन और सुरक्षा को लेकर लोगों के लापरवाही भरे नजरिए को दिखाता है
सर्वे से पता चला है कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले अधिकांश लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में साइबर सिक्योरिटी के तरीकों को जाने-अनजाने में उपेक्षा करते हैं। उनके बच्चे ऑनलाइन क्या कंटेंट देख रहे हैं, इस पर वे नजर नहीं रखते हैं।
सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा रहा है कि 60 प्रतिशत परिजनों ने माना कि वे अपने बच्चों द्वारा ऑनलाइन देखे जाने वाले कंटेंट की निगरानी नहीं करते हैं. यह काफी चिंता का सबब है क्योंकि जाने या अनजाने में ही बच्चे इंटरनेट का गलत उपयोग करते हैं और इसके परिणाम काफी गंभीर होते हैं।

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