नई दिल्ली,अक्सर पुरुषों की जेब का ख्याल रखने वाली महिलाओं की पोशाकों में जेब नहीं होती। यदि जेब होती भी है तो बस नाम की या फिर ज्यादातर विदेशी परिधान में ही जेब पाई जाती है। परंतु अधिकतर भारतीय पोशाक ऐसी होती है, जिनमें जेब नहीं होती। आखिर ऐसी क्या वजह है जिसकी कारण महिलाओं के परिधान में जेब नहीं होती। दरअसल भारत में जेब अंग्रेजों की देन है और उस वक्त अंग्रेज महिलाओं के कपड़ों में भी जेब नहीं हुआ करती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उस समय जेब मरदानी चीज समझी जाती थी। ऐसा 1837 के जमाने में जिसे विक्टोरियन युग यानी ब्रिटिश महारानी विक्टोरिया का शासनकाल कहा जाता था, तब हुआ करता है।
महिलाओं के ड्रेस में जेब ना होने का एक कारण फैशन भी है। दरअसल महिलाओं के कपड़े डिजाइन करने वाले डिजाइनर अक्सर उनकी सुविधाओं से ज्यादा उनकी सुंदर दिखने पर ज्यादा जोर देते हैं। ऐसा माना था की ड्रेस ऐसी डिजाइन होनी चाहिए, जिससे महिलाओं के शरीर को सही से दिखाया जा सके। जब 1846 के बाद आधुनिक फैशन की शुरुआत हुई तो फैशन डिजाइनर महिलाओं के लिए बड़े गले, पतली कमर और नीचे से घेरदार स्कर्टनुमा ड्रेस डिजाइन करने लगे थे। धीरे- धीरे चलन महिलाओं की ड्रेसों से जुड़े फैशन की बुनियाद बन गया।
कपड़ों में जेब ना होने का एक कारण बाजारवाद भी है। यदि उनके पास जेब नहीं होगी, तो वह पर्स रखेंगी और फिर पर्स का भी अपना एक उद्योग चलेगा। परंतु फिर एक ऐसा वक्त आया जब महिलाओं को कपड़ों में पॉकेट की जरूरत महसूस हुई और तब जाकर उन्होंने गिव अस पॉकेट नामक अभियान चलाया। यह मांग यूरोपीय देशों की महिलाओं ने की। इसके बाद कई कपड़ों में जेब दी गई, लेकिन उनका साइज काफी छोटा रखा है। स्टडी के अनुसार पुरुषों की क्षेत्र की लंबाई 9.1 इंच और चौड़ाई 6.4 इंच होती है, परंतु महिलाओं की पॉकेट की लंबाई 5.6 और चौड़ाई 6 इंच होती है। यह इतनी छोटी होती है कि पुरुषों की तरह महिलाएं इसमें हाथ भी नहीं डाल सकती। पहले और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान महिलाओं के ड्रेस में पॉकेट हुआ करती थी, वो भी काफी बड़ी हुआ करती थी। परंतु बाद में शार्ट स्कर्ट्स का चलन आने के बाद पॉकेट खत्म होता चला गया। हालांकि आजकल महिलाओं के कपड़ों में जेब डिजाइन लगी है, परंतु ऐसे कपड़ों की संख्या काफी कम है।