MP के 28 जिला अस्पतालों में पैथोलॉजिकल जांच के लिए होगी सेंट्रल पैथोलॉजी लैब आउटसोर्स से होगी जांच

भोपाल,अगले साल से सरकारी अस्पतालों में पैथोलॉजिकल जांचें पूरी तरह से ऑटोमैटिक हो जाएंगी। यह व्यवस्था प्रदेश के 28 जिला अस्पतालों में लागू की जाएगी। इससे जांच की गुणवत्ता बेहतर होगी। इसके लिए इन अस्पतालों में सेंट्रल पैथोलॉजी लैब (सीपीएल) बनाई जा रही है। जांचें आउटसोर्स पर निजी एजेंसी से कराई जाएंगी। कंपनी को यूनाइटेड स्टेट फूड एंड ड्रग एडिमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) से मान्यता प्राप्त मशीनें ही लगाना होगा। सीपीएल बनने का एक फायदा यह भी होगा की मरीजों की सभी जांचें एक जगह पर हो जाएंगी। जिला अस्पतालों में जांचों की गुणवत्ता सुधारने के लिए सीपीएल बनाई जा रही है। नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचएम) के तहत यह काम किया जा रहा है।
जिन जिला अस्पतालों में यह सुविधा शुरू होगी, उनमें भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, बालाघाट, भिंड, छिंदवाड़ा, धार, खंडवा, खरगौन, मंडला, मंदसौर, सागर, सतना, सिवनी, शाजापुर, उज्जैन, शहडोल, रीवा, मुरैना, विदिशा, दमोह, बैतूल, रतलाम, शिवपुरी, गुना, होशंगाबाद, सीहोर जिला शामिल है। इधर,एनएचएम के अफसरों ने बताया कि जांच के लिए कंपनियों से ऑफर बुलाए गए हैं। कंपनी खुद जांच की मशीनें लगाएगी। जांच में इस्तेमाल होने वाले केमिकल (रीएजेंट) भी कंपनी के होंगे। कर्मचारी व जगह अस्पताल की होगी। कंपनी को सेंट्रल गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (सीजीएचएस) दर से कम रेट पर जांच करना होगा। सबसे कम दर पर जांच करने वाली कंपनी को मौका दिया जाएगा। सेंट्रल पैथोलॉजी लैब में मरीजों की जांच अत्याधुनिक मशीनों से होगी, जिससे गुणवत्ता बेहतर रहेगी।
जांच के लिए 5 पार्ट एनालाइजर लगाए जाएंगे जो सबसे ज्यादा आधुनिक हैं। मरीजों को कंप्यूराइज रिपोर्ट तय समय पर मिल जाएगी। ऑनलाइन रिपोर्ट लेने की सुविधा भी रहेगी। सभी जांचें एक जगह पर हो जाएंगी। जांच के लिए टोकन सिस्टम लागू किया जाएगा, जिससे मरीजों को कतार में नहीं लगना पड़ेगा। जांच के लिए सेमी ऑटो एनालाइजर उपयोग किए जा रहे हैं। इसमें कुछ काम मैन्युअल होता है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित होती है। समय भी ज्यादा लगता है। मरीजों को अलग-अलग जांचों के लिए कई बार ब्लड देना पड़ता है। जांच के लिए तीन बार कतार में लगना पड़ता है। एक बार पर्चे पर नंबर चढ़वाने के लिए, फिर सैंपल देने के लिए और बाद में रिपोर्ट लेने के लिए।अभी कई बार जांच की क्वालिटी को लेकर सवाल उठते हैं। एक ही मरीज की जांच रिपोर्ट जिला अस्पताल में अलग और दूसरी लैब में अलग आती है। रिपोर्ट हाथ से बनाई जाती है, जिससे गलती होने की आशंका रहती है। इस संबंध में संयुक्त संचालक डॉ. पंकज शुक्ला का कहना है कि इस साल 28 जिला अस्पतालों को लिया गया है जहां पर मरीजों की संख्या ज्यादा है। बाकी अस्पतालों को अगले वित्तीय वर्ष शामिल करने कोशिश है। इस व्यवस्था से जांच की गुणवत्ता बेहतर हो जाएगी। जांच करने वाली कंपनी को अंतरराष्ट्रीय स्तर की मशीनें लगाना है। बार कोडिंग सिस्टम भी रहेगा।

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