देश को समर नहीं समरसता की जरूरत : राष्ट्रपति कोविंद

इन्दौर/अम्बेडकर नगर,राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा है कि आज देश को समर नहीं समरसता की जरूरत है। उन्होने बाबा साहब के समरसता के संदेश को जीवन में अपनाने का संकल्प लेने का आव्हान किया। श्री कोविंद ने कहा कि बाबा साहब ने हमेशा शांति, करूणा और अंहिसा का रास्ता चुना। उन्होने नागरिकों से बाबा साहब के सपनों का भारत निर्माण करने में अपना योगदान देने का आव्हान किया। राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्र की अखण्डता के संदर्भ में बाबा साहब कहते थे कि “वे पहले भारतीय हैं, बाद में भी भारतीय हैं और अंत में भी भारतीय हैं।”
राष्ट्रपति आज यहाँ बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर की जन्मस्थली महू में आयोजित 127वीं जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रपति ने भीम जन्म भूमि स्मारक जाकर भारत रत्न डॉ भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया और अनुयायियों के बीच बैठकर भोजन ग्रहण किया।
राष्ट्रपति ने महू में हर साल अम्बेडकर महाकुंभ आयोजित करने के लिये मध्यप्रदेश सरकार की सराहना की। श्री कोविंद ने कहा कि डा अम्बेडकर क जन्म स्थली महू नागरिकों के लिये प्रेरणस्त्रोत है। उन्होने कहा कि नई पीढी को यह समझना होगा कि आधुनिक भारत के निर्माण की नींव बाबा साहब ने रखी थी। दामोदर वैली, हीराकुंड जैसे बांध और वृहद बिजली परियोजनाएं लागू करने जैसे बडे कामों के पीछे बाबा साहब की प्रगतिशील सोच थी। उन्होने बाबा साहब का योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि डा अम्बेडकर ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाया। मजदूरों के काम के घंटे बारह से घटाकर आठ किये। महिलाओं को संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिलाया। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान है।
श्री कोविंद ने कहा कि बाबा साहब ने हमेशा भगवान बुद्ध के शांति और अंहिसा का मार्ग अपनाया। वे कहते थे कि जब विरोध के संवैधानिक उपकरण उपलब्ध हैं तो हिसात्मक तरीकों की कोई जरूरत नही है। वे महान विधिवेत्ता, विद्वान और समाज सुधारक थे। उनके बनाये संविधान की शक्ति से प्रजातंत्र जीवंत हुआ। कमजोर, वंचित और पिछडे लोगों को आगे बढ़ने का मौका मिला जिससे वे देश की प्रगति में योगदान देने में सक्षम बने हैं।

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