दस लाख की रिश्वत मांगने के आरोप में फंसे आईपीएस गौरव राजपूत को लोकायुक्त ने निर्दोष पाया

भोपाल,लोकायुक्त ने आईपीएस गौरव राजपूत को निर्दोष पाया है और उनकी खिलाफ चल रही जांच को निराधार मानकर समाप्त कर दिया है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने राजपूत को डीआईजी पद के लिये इम्पैनेल्ड कर दिया है। श्री राजपूत अब केंद्र सरकार में डीआईजी या उसके बराबर के किसी पद पर नियुक्त किये जा सकेंगे। गौरतलब है कि कटनी के चर्चित डॉ लालवानी रिश्वत काण्ड में तत्कालीन एसपी गौरव राजपूत और टीआई गायत्री सोनी पर 10 लाख रुपये रिश्वत मांगने का आरोप लगा था। रिश्वत नहीं देने पर डॉक्टर विशम्भर लालवानी के अस्पताल को सील कर देने का भी आरोप था। डॉक्टर की शिकायत पर पीएचक्यू ने मामले की पहली जांच छिंदवाड़ा के पुलिस उपमहानिरीक्षक को सौंपी थी। जबलपुर जोन के आईजी डी श्रीनिवास राव को 27 जून 2016 को सौंपी गयी जांच रिपोर्ट में गौरव राजपूत को निर्दोष पाया गया था।पूरा विवाद कटनी की एक महिला प्रतिभा बजाज की आत्महत्या से शुरु हुआ था। आग से झूलसी प्रतिभा बजाज ने अपने पहले मृत्यु पूर्व बयान में अपनी आत्महत्या के लिये सोनिया मेहतरानी को दोषी ठहराया था। जबलपुर रिफर करने के बाद अपने दूसरे मृत्यु पूर्व बयान में प्रतिभा ने 5-6 लोगो के नाम लिये थे। जिसमें से एक नाम डॉ. मंगतराम लालवानी का था। डॉक्टर मंगतराम की मृत्यु 1994 में हो चुकी थी।
बताया गया है कि प्रतिभा ने कभी भी डॉ विशम्भर लालवानी का नाम नहीं लिया था। इसके बावजूद डॉ लालवानी लगभग 4 महीने बाद प्रदेश के डीजीपी को एक शपथ-पत्र देकर तत्कालीन एसपी गौरव राजपूत और टीआई गायत्री सोनी पर 10 ​लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप लगाया। लालवानी का आरोप था कि प्रतिभा बजाज के केश में उसे फंसाने की धमकी देकर पैसो की मांग की गयी थी। इस शिकायत के बाद मामले की जांच ​छिदवाड़ा रेंज के पुलिस महानिरीक्षक को दी गयी थी।पुलिस उपमहानिरीक्षक की जांच में तत्कालीन एसपी गौरव राजपूत पूरी तरह से निर्दोष साबित हुवे लेकिन इसी मामले में आरोपी टीआई गायत्री सोनी व अन्य पुलिसकर्मियों ने दूसरी जांच की मांग कर दी। इस बार जांच बालाघाट के एडीजी को सौंपी गयी। एडीजी की जांच ने दूसरा रुख ले लिया। दोनो जांच रिपोर्ट में अलग-अलग बातें सामने आने के बाद पुलिस मुख्यालय आपीएस गौरव राजपूत के मामले में निर्णय नहीं ले पाया। इस मामले को लेकर एक मीडिया रिपोर्ट में गौरव राजपूत को बचाने की बात सामने आयी। जिस पर लोकायुक्त ने स्वत: ही संज्ञान लेकर श्री राजपूत के खिलाफ शिकायत दर्ज कर जांच शुरु कर दी।करीब 7 महीने चली जांच में लोकायुक्त ने गौरव राजपूत को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। लोकायुक्त ने लिखा है कि जब प्रतिभा बजाज के मृत्यु पूर्व बयान में डॉ. विशम्भर लालवानी का नाम नहीं था तो ऐसी स्थिति में रिश्वत मांगने का प्रश्न ही नहीं उठता। डॉ.लालवानी ने अपनी शिकायत में मधुसूदन नायक के सामने रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था। जबकि मधुसूदन नायक ने एक शपथ—पत्र देकर एैसी किसी बात से साफ इंकार कर दिया था। लोकायुक्त ने यह भी कहा है कि डॉक्टर लालवानी ने अत्यधिक देरी से पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप लगाये थे। लोकायुक्त का मानना है कि जिस वक्त रिश्वत मांगी गयी उस समय पुलिस के आला अधिकारियों से मामले की शिकायत डॉक्टर लालवानी कर सकते थे लेकिन ऐसा उन्होंने नहीं किया। वह चाहते तो अधिकारियों को रिश्वत लेते हुवे ट्रेप भी करा सकते थे। इसी तरह अन्य बिंदुओं की जांच के आधार पर लोकायुक्त ने डॉ.लालवानी की शिकायत को मनगढंत व झूठा पाया है और जानबूझ कर तत्कालीन एसपी गौरव राजपूत और अन्य पुलिस अधिकारियों को फंसाने की कोशिश बताया है। आईपीएस गौरव राजपूत के​ खिलाफ जांच हो चुकी है और उसी जांच में लोकायुक्त ने राजपूत को क्लिनचिट दे दी है।जांच लम्बित होने का हवाला देकर पीएचक्यू द्वारा पिछले महीने श्री राजपूत का प्रमोशन रोक दिया गया था। उसके बावजूद केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें डीआईजी पद के इम्पैनेल्ड कर दिया है। केंद्र सरकार देश की सभी प्रमुख जांच एजेंसियों से अभिमत लेने के बाद किसी आईपीएस को इम्पैनेल्स करती है।

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