लालबहादुर शास्त्री को नहीं था RSS से बैर,गुरूजी से अक्सर करते थे चर्चा

नई दिल्‍ली, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की ऑर्गनाइजर’ में रिपोर्टिंग करते हुए कई बार हुई शास्त्रीजी से भेंट हुई उन्होंने अपने एक आर्टिकल में दावा किया है की शास्त्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ वैचारिक रूप से कोई वैमनस्य नहीं रखते थे और प्रधानमंत्री रहते हुए वह गुरू गोलवलकर को अक्सर विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया करते थे। शास्त्री को समर्पित कांग्रेसी करार देते हुए आडवाणी ने कहा कि अपने निजी गुणों की वजह से उन्होंने देश का विश्वास जीता।
आडवाणी ने बीते दिनों आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के 70 साल पूरा होने के अवसर पर आए संस्करण में छपी एक संपादकीय में यह बात कही है। इस लेख में आडवाणी ने कहा, नेहरू से उलट,शास्त्री ने जनसंघ और आरएसएस को लेकर किसी तरह का वैमनस्य नहीं रखा। वह श्री गुरूजी को राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए बुलाया करते थे। आडवाणी का यह लेख उनकी जीवनी ‘माई कंट्री, माई लाइफ’ से लिया गया है।ऑर्गनाइजर’ से 1960 में बतौर सहायक संपादक जुड़ने वाले आडवाणी ने कहा कि वह इस साप्ताहिक के प्रतिनिधि के तौर पर शास्त्री से कई बार मिले।
उन्होंने कहा हर मुलाकात में मुझ पर इस छोटे कद,लेकिन बड़े हृदय वाले प्रधानमंत्री की सकारात्मक छाप पड़ी। शास्त्री 1964 से 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी पिछले साल शास्त्री की तारीफ की थी। इस बीच मध्‍य प्रदेश में भारतीय जनता युवा मोर्चा की एक बुकलेट में पंडित नेहरू पर आपत्तिजनक टिप्‍पणी के कारण विवाद शुरू हो गया है। दरअसल मध्‍य प्रदेश की बीजेवाईएम ने पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय पर एक ‘अंतरराष्‍ट्रीय सामान्‍य ज्ञान प्रतियोगिता’ का आयोजन मंगलवार को किया था। पूरे राज्‍य से 26 लाख से अधिक छात्रों ने इसमें हिस्‍सा लिया था। इसकी तैयारी के लिए 49 पेज की एक बुकलेट भाजयुमो ने जारी की थी। इसमें पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय की विचारधारा,उनके समग्र मानवता के दर्शन, धर्म और अंत्‍योदय पर चैप्‍टरों के साथ 230 बहुविकल्‍पीय प्रश्‍न थे। इन्‍हीं में से एक चैप्‍टर में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को सत्‍ता का लालची बताया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक इस बुकलेट के चैप्‍टर अखंड भारत में लिखा है,पंडित दीनदयाल का स्‍पष्‍ट मत था कि भारतमाता को खंडित किए बिना भी भारत की आजादी प्राप्‍त की जा सकती है…किंतु पंडित नेहरू और जिन्‍ना के सत्‍ता लालच और अंग्रेजों की चाल में आ जाने से भारतवासियों का ये सपना पूरा नहीं हुआ और खंडित भारत को आजादी मिली।

 

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