अन्ना 23 मार्च से शुरु करेंगे जनलोकपाल को लेकर आंदोलन

मुंबई,मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे जनलोकपाल और किसानों के मुद्दों को लेकर एक बार फिर आंदोलन करने के मूड में  है। अन्ना अगले साल दिल्ली में 23 मार्च से आंदोलन शुरू करने की घोषणा कर चुके है। मनमोहन सरकार के समय लोकपाल आंदोलन का चेहरा रहे हजारे ने कहा कि उन्होंने आंदोलन शुरू करने के लिए 23 मार्च की तारीख चुनी है क्योंकि उस दिन ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रालेगण सिद्धि गांव में अपने समर्थकों की एक बैठक को संबोधित करते हुए हजारे ने कहा, जनलोकपाल किसानों की समस्या और चुनाव में सुधारों के लिए यह एक सत्याग्रह होगा।
गांधीवादी हजारे ने कहा कि वह इन मुद्दों को लेकर प्रधानमंत्री को खत लिखते रहे हैं लेकिन उन्हें अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। उन्होंने कहा,पिछले 22 वर्षों में कम से कम 12 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। मैं जानना चाहता हूं कि इस कालखंड में कितने उद्योगपतियों ने आत्महत्या की।’ भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए हजारे जनलोकपाल का गठन करने की मांग करते रहे हैं।उन्होंने इसके लिए मनमोहन सरकार के समय साल 2011 में 12 दिन का अनशन किया था। उनकी मांगों को संप्रग (यूपीए) सरकार ने सैद्धांतिक तौर पर स्वीकार कर लिया था। इसके बाद हजारे ने फिर से अनशन किया था,इस दौरान उन्हें पूरे देश से समर्थन भी मिला। इसके बाद संप्रग सरकार ने लोकपाल विधेयक पारित किया। इस आंदोलन में अन्ना को अरविंद केजरीवाला और मनीष सिसोदिया का साथ मिला था लेकिन आज इन दोनों का अन्ना से साथ छोड़ दिया है।
हजारे के एक सहयोगी ने बताया कि मोदी सरकार ने लोकपाल की नियुक्त नहीं की है। उन्होंने कहा, ‘सरकार की तरफ से इसके लिए जो कारण दिए गए हैं,वह तकनीकी है। उन्होंने कहा कि लोकपाल कानून के तहत एक समिति जिसमें प्रधानमंत्री,लोकसभा अध्यक्ष,लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधान न्यायाधीश अथवा उनके द्वारा नामित कोई व्यक्ति हो,उसका गठन किया जाना चाहिए। वही समिति लोकपाल को चुने। उन्होंने कहा,लेकिन लोकसभा में फिलहाल विपक्ष का कोई नेता नहीं है इसलिए समिति का गठन नहीं हो सकता है। इसकारण वर्तमान में देश में लोकपाल की नियुक्ति भी नहीं हो सकती है।
बात दे कि मनमोहन सरकार के दौरान अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन किया था जिसके बाद केन्द्र की मनमोहन सरकार को अन्ना हजारे के सामने झुककर उनकी लोकपाल नियुक्त करने की मांग को मनाना पड़ा था। राजनैतिक जानकार मानते हैं इसी आंदोलन के बाद मनमोहन सरकार की विदाई तय हो गई थी।

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