गोरखपुर, माना जाता है कि हर चीज़ की एक हद होती है, लेकिन हर नियम की तरह शायद इस बात के भी कुछ अपवाद होते हैं। मिसाल के लिए गोरखपुर के बाबा राघवदास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में तकरीबन हर दिन दहाई की तादाद में हो रही मासूमों की मौत का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले चौबीस घंटों में फिर वहां 16 बच्चों की मौत हो गयी है। यूं तो इस किस्म की मौतों का सिलसिला यहां 30 सालों से चल रहा है, मगर इस बार मौत का तांडव कुछ ज्यादा ही उग्र दिखता है। बीते तीन महीनों में वहां मरने वाले बच्चों की संख्या एक हज़ार तक पहुंचने को है। अगस्त में 378 मौतें हुई थीं और तब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा था कि अगस्त में यहां हर साल बड़ी तादाद में मौतें होती ही हैं। सितंबर में यह संख्या 433 रही और अब अक्टूबर के शुरूआती बारह दिनों में 175 बच्चे यहां अंतिम सांस ले चुके हैं। बता दें कि
10 और 11 अगस्त को हुई 36 मासूमों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया था। तब इन मौतों की वजह आईसीयू में ऑक्सीजन की आपूर्ति में गड़बड़ी थी। मगर उसके बाद हालात बदले नहीं हैं। हालांकि 36 मौतों के बाद मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य डॉक्टर राजीव मिश्रा और उनकी पत्नी सहित नौ लोगों को जेल जाना पड़ा था। अफसरों से लेकर हाईकोर्ट के जांच दलों के अनेक दौरे हुए। बाहर से बुलाए गए डॉक्टरों की तैनाती हुई और इंतजाम पहले से बेहतर बनाने की कोशिश भी हुई. लेकिन बच्चों की मौत का आंकड़ा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है।
वर्षों तक यहां बच्चों की मौतों का जिम्मेदार इंसेफेलाइटीस या दिमागी बुखार को माना जाता था और सारी कवायद इसी की रोकथाम के इर्द-गिर्द होती थी, मगर इस साल मौतों की बड़ी वजह कुछ और नजर आ रही है। इस साल अब तक यहां बच्चों की लगभग दो हज़ार मौतों में इंसेफेलाइटीस से मरने वालों की संख्या केवल 333 है। मेडिकल कॉलेज के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर रमाशंकर शुक्ला के मुताबिक, मरने वालों में ज्यादातर बच्चे नवजात शिशु हैं। इनमें से अधिकतर आसपास के 8 जिलों के दूर दराज के गांवों के गरीब परिवारों के थे, जिन्हें यहां पहुंचने में देर हो जाती है और उन्हें बचाना तकरीबन नामुमकिन हो जाता है। उन्होंने कहा, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। हर साल इसी तरह की मौतें होती रही हैं। तकरीबन तीस सालों से इस मेडिकल कॉलेज में सेवाएं दे रहे पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एके श्रीवास्तव कहते हैं, पूर्वी उत्तर प्रदेश के अधिकांश ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए मेडिकल कॉलेज सबसे बड़ा केंद्र है, लिहाजा स्थितियां बिगड़ने पर लोग यहीं आते हैं। कई बार उनके पहुंचने तक बहुत देर हो चुकी होती है, जिसे नवजात बच्चे सहन करने की स्थिति में नहीं होते।
यहां हर रोज ओपीडी में लगभग ढाई हज़ार मरीज आते हैं। 950 बिस्तरों वाले इस कालेज में क्षमता से ज्यादा मरीज भर्ती होते हैं। खासकर बच्चों के वार्ड और आईसीयू में हालात बेहद चिंतनीय हैं, जहां कई बार तो एक बेड पर तीन-तीन बच्चों को लिटाना पड़ता है। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. केपी कुशवाहा कहते हैं, जब तक पेशेवर दक्षता और मानकों के मुताबिक इंतजामों के साथ तैयारी नहीं होती, तब तक बच्चों की लगातार मौतों का सिलसिला नहीं रुकेगा। बता दें कि गोरखपुर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृहनगर है।