पुणे में गणेश महोत्सव के इतिहास को लेकर विवाद

पुणे, पुणे नगर निगम ने गणेश उत्सव के 125 वें वर्ष को धूमधाम से मनाने का निर्णय किया है और इसी के साथ शहर की एक संस्था ने दावा किया है कि इस उत्सव की शुरूआत बाल गंगाधर तिलक ने नहीं, भाऊसाहेब लक्ष्मण जवाले उर्फ भाऊ रंगरी ने की थी| साथ ही यह भी कहा कि यह 125 वां नहीं 126 वां समारोह है|
श्रीमंत भाऊसाहेब रंगरी गणपति ट्रस्ट ने दावा किया है कि इस आयोजन की शुरूआत बाल गंगाधर तिलक ने नहीं, भाऊसाहेब लक्ष्मण जवाले उर्फ भाऊ रंगरी ने सन 1892 में की थी| न्यास ने दावा किया है कि अगले महीने आना वाला गणपति महोत्सव 125 वां नहीं, बल्कि 126 वां हैं। न्यास के पदाधिकारियों ने बताया कि न्यास ने राज्य सरकार और नगर निगम को कानूनी नोटिस भेज कर उत्सव की तैयारी बंद करने की मांग की है|
न्यास के सदस्य सूरज रेनुसे ने कहा 1892 में भाऊसाहेब ने सामुदायिक स्तर पर गणेश महोत्सव मनाने का प्रस्ताव रखने के लिए अपने आवास पर एक बैठक बुलाई थी। इस बैठक में उस समय के अनेक दिग्गजों ने भाग लिया था। उन्होंने बताया कि रंगरी के नेतृत्व में शहर में तीन स्थानों पर गणेश की तीन मूर्तियां लगाई गईं। इसके पीछे का मकसद विभिन्न जाति और वर्ग के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करना था। उन्होंने बताया कि इसके एक साल के भीतर शहर में मंडलों की संख्या बढ़ गई।
इसके बाद तिलक ने अपने समाचारपत्र केसरी में इस पर एक लेख भी लिखा था और आयोजन की सराहना की थी। उन्होंने बताया कि 1894 में तिलक ने विंचुरकर वाडा में पहली गणपति प्रतिमा लगाई थी। न्यास उपलब्ध दस्तावेजों का अध्ययन करने और सही इतिहास लोगों के सामने लाने के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने की मांग कर रहा है।

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