नई दिल्ली,महाराष्ट्र और ओडिशा के राज्य दवा प्राधिकरणों ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय दवा मूल्य प्राधिकरण (एनपीपीए) से कुछ मेडिकल उपकरणों के दामों को नियंत्रित करने की सिफारिश की थी। केंद्र और एनपीपीए अगर इन डिवाइसेज की कीमतें नियंत्रित भी करती है तो इसके दायरे में भारत के दवा उपकरण बाजार का केवल 15 फीसदी हिस्सा आएगा। भारत का मेडिकल डिवाइस मार्केट 2015 में 25,000 करोड़ रुपये का था जिसके 2020 तक दोगुना होने की संभावना है। इन उपकरणों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में उपयोग किए जाने योग्य जैसे की सिरिंज, फेस मास्क इत्यादि शामिल हैं। दूसरी श्रेणी में मरीजों की जांच करने के लिए उपयोगी जिसमें कि स्टेंट्स, ऑर्थोपेडिक इंप्लान्ट, पेसमेकर आदि शामिल हैं। डायग्नोस्टिक इमेजिंग जैसे कि सीटी स्कैन, एमआरआई, एक्स रे आदि में से किसी भी आइटम की कमतों पर कोई कैप नहीं लगाया गया है। मेडिकल डिवाइसेज में इन मशीनों का मार्केट 30प्रतिशत है। इसके अलावा ईसीजी मशीन, डायलेसिस मशीनों, एंडोस्कॉपी और लैप्रॉस्कोपी में काम आने वाले उपकरणों को अन्य श्रेणी में रखा गया है, जो कि कुल मार्केट का 24फीसदी है। इसके अवाला लैब रीएजंट्स और अक्सेसरीज को भी कीमतों के नियंत्रण से अलग रखा गया है। हेल्थकेयर में करीब 5,000 डिवाइसेज का इस्तेमाल होता है। हेल्थ ऐक्टिविस्ट्स के मुताबिक अगर इसमें से जरूरी और ज्यादा इस्तेमाल वाली कुछ सौ डिवाइसेज की पहचान भी कर दी जाती है तो इसकी कीमत नियंत्रित करने की प्रक्रिया में लंबा वव्त लग सकता है। उन्होंने कहा मरीजों को रोज परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और सरकार एक दो डिवाइसेज की कीमतें नियंत्रित कर रही है। अकेले स्टेंट की कीमतें नियंत्रित करने में लगभग 4 साल का वव्त लग गया। महाराष्ट्र और ओडिशा के दवा प्राधिकरणों की एक जांच में सामने आया है कि कंज्यूमेबल कैटिगरी में आने वाली मेडिकल डिवाइसेज पर पर अस्पताल मरीजों से 150 से 250 प्रतिशत तक अधिक कीमतें वसूल कर मुनाफा कमा रहे हैं। इन डिवाइसेज में सिरिंज से लेकर ऐन्जियोप्लास्टी में इस्तेमाल होने वाले महंगे से महंगे उपकरण शामिल है। एक मामले में तो उपकरणों की कीमतें थोक दाम से 10 गुना अधिक थी।