एयर इंडिया को टुकड़ों में बेच सकती है सरकार

नई दिल्ली,मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से देश में घाटे में चल रही कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया शुरु कर दी हैं इसी कड़ी में मोदी सरकार घाटे में चल रही सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को बेचने का सैद्धांतिक फैसला कर चुकी सरकार, अब इसे टुकड़ों में बेचने पर विचार कर रही है। इस कदम के पीछे सरकार का उद्देश्य संभावित खरीदारों के लिए इसे ‘फायदे का सौदा’ बनाना है। मामले की जानकारी रखने वाले कई सरकारी अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट ने पिछले महीने ही एयर इंडिया में विनिवेश को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। इससे पहले एयर इंडिया के परिचालन को जारी रखने के लिए सरकारें लगातार कई हजार करोड़ रुपये खर्च कर चुकी हैं। अपने महाराजा मैस्कॉट के लिए पहचानी जाने वाली एयर इंडिया की स्थापना 1930 में हुई थी। एयर इंडिया पर करीब 55,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। 2012 में यूपीए सरकार ने उसे 30,000 करोड़ रुपये का बेल आउट पैकेज दिया था।
कभी देश की सबसे बड़ी विमानन कंपनी रही एयर इंडिया का मार्केट शेयर घरेलू बाजार में इंडिगो और जेट एयरवेज जैसी निजी विमानन कंपनियों के आने के बाद गिरकर 13 फीसदी रह गया। एयर इंडिया को कर्ज से उबराने के लिए सरकारों द्वारा पूर्व में उठाए गए सभी कदम असफल रहे हैं। अगर मोदी सरकार इसे बेचने में सफल हो जाती है तो एक सुधारक के रूप में पीएम की छवि और मजबूत होगी। नाम जाहिर न करने की शर्त पर अधिकारियों ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने एयर इंडिया की बिक्री की प्रक्रिया शुरू करने के लिए अगले साल की शुरुआत तक का समय निर्धारित किया है। अधिकारी ने कहा कि इस प्रक्रिया में काफी समय लगेगा। हालांकि अभी इस बात पर एकराय नहीं बन पाई है कि सरकार को कुछ हिस्सेदारी अपने पास रखनी चाहिए या फिर उसे पूरी तरह बेच दिया जाना चाहिए। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि कहीं ऐसा न हो कि खरीदार सिर्फ फायदे की चीजें ले लें और सरकार के पास सिर्फ लाभहीन हिस्से बच जाएं।
एयर इंडिया के 40,000 कर्मचारियों में से 2500 का प्रतिनिधित्व करने वाले एक लेबर यूनियन के बेचने के फैसले का विरोध किया है। हालांकि वैचारिक रूप से उनका झुकाव बीजेपी की ओर है। एयर इंडिया की छह सहायक इकाइयां है जिनमें से तीन का कुल घाटा 30 हजार करोड़ रुपये है। इसके अलावा एयर इंडिया के पास करीब 8 हजार करोड़ रुपये की रियल एस्टेट प्रॉपर्टी है जिसमें दो होटल भी शामिल हैं। हालांकि इनका मालिकाना हक कई सरकारी विभागों के बीच बंटा हुआ है। 1997 से 2010 तक एयर इंडिया के ऑपरेशन हेड रहे जितेंद्र भार्गव ने कहा, ‘यह प्रक्रिया जटिल है और इससे बचने का कोई आसान उपाय नहीं है।’ इस प्रक्रिया से सीधा संबंध रखने वाले दो अधिकारियों ने कहा कि कंपनी के विभिन्न बिजनस की अभी तक किसी ने सही कीमत नहीं आंकी है। लेकिन एयर इंडिया की बिप्री प्रक्रिया पर कंपनी के चेयरमैन अश्वनी लोहानी, प्रधानमंत्री कार्यालय और उड्डयन मंत्रालय ने कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया।

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