गुड गवर्नेंस स्कूल ने दस सालों में एक भी सुझाव नहीं दिया

भोपाल,प्रदेश में सरकार के कामकाज में सुधार और सुशासन के लिए ‘अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान (गुड गवर्नेंस स्कूल)’ काम कर रहा है, लेकिन पिछले 10 साल में संस्थान ने सरकार को सुशासन की दिशा में सुधार के लिए कोई सुझाव ही नहीं दिए। सूत्रों के मुताबिक, 2007 में स्थापित गुड गवर्नेंस स्कूल पर हर साल करीब 8 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। ये राशि 66 अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन भत्ते और सुख-सुविधाओं पर खर्च की जाती है। संस्थान योजनाओं के विश्लेषण और विभाग के मैन्युअल बनाने तक सीमित है।विश्लेषण रिपोर्ट पर सरकार ने कितना काम किया, संस्थान के अधिकारियों ने ये भी जानने की कोशिश नहीं की। अफसरों का कहना है कि सरकार रिपोर्ट पर कितना अमल करती है, वे यह नहीं बता सकते। उल्लेखनीय है कि संस्थान का मूल काम जनता की अपेक्षा और सरकार की नीतियों का विश्लेषण कर बेहतर प्रबंधन के सुझाव देना है।
संस्थान की उपलब्धि को लेकर महानिदेशक पदमवीर सिंह और निदेशक अखिलेश अर्गल द्वारा 60 से ज्यादा योजनाओं का विश्लेषण और चार विभागों के मैन्युअल को उपलब्धि में गिना दिया। संस्थान अब तक पुलिस के नियम, उद्यानिकी, पशुपालन और मत्स्य विभाग के मैन्युअल बना चुका है। जबकि वन, चिकित्सा, कृषि विभाग के मैन्युअल पर काम चल रहा है। अफसर कहते हैं कि ये बड़ा काम है। मैन्युअल से विभाग की कार्यप्रणाली तय होती है। सुशासन को लेकर सरकार को सुझाव देने के सवाल को अफसर टाल गए। इस बारे में अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान के महानिदेशक पदमवीर सिंह का कहना है कि संस्थान की उपलब्धि सीधे तौर पर नहीं बताई जा सकती है। हमने दर्जनों योजनाओं का विश्लेषण कर रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। विभागों के मैन्युअल बनाए हैं। जिससे उनकी कार्यप्रणाली तय होती है।

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