दिव्यांगता को बनाई ताकत, सिविल सेवा परीक्षा: संघर्ष से सफलता की तीन कहानियां

नई दिल्ली,राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल खेर जन्म से दिव्यांग है। हड्डियां कमजोर होने की वजह से कई बार उसे चोटें भी लगती रही। लेकिन, उसने इसे अपनी ताकत बना लिया और सिविल सेवा परीक्षा में ४२०वीं रैंक हासिल की है।
२८ साल की उम्मुल को १५ से भी ज्यादा बार फ्रेक्चर हुए। पहले दिल्ली में निजामुद्दीन की झुग्गियें में उम्मुल का बचपन बीता। उम्मुल के पिता सड़क पर मूंगफली बेचा करते थे। झुग्गियां टूटने के बाद परिवार त्रिलोकपुरी पहुंच गया। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। मां के देहांत के बाद उम्मुल की सौतेली मां आई और उसे घर छोड़ना पड़ा। उम्मुल रोज आठ-आठ घंटे बच्चों को पढ़ाती और पढ़ाई करती। १२वीं के बाद उम्मुल ने गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। इसी दौरान कई देशों में दिव्यांग लोगों के कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया। ग्रेजुएशन के बाद उम्मुल को साइकोलॉजी विषय छोड़ना पड़ा क्योंकि वह इंटर्नशिप करती तो ट्यूशन नहीं पढ़ा पाती। उम्मुल ने जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशंस में एमए किया। जेएनयू से ही उम्मुल ने एमफिल भी किया। २०१४ में उम्मुल को जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम में मौका मिला। १८ साल में सिर्फ तीन भारतीय इसमें चुने गए थे।
जनवरी २०१६ में उम्मुल ने आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर ली।
माता-पिता को किया माफ
उम्मुल के साथ सौतेली मां ने जैसा भी व्यवहार किया हो उसने सभी को माफ कर दिया। उम्मुल का कहना है कि शायद उनके पिता ने लड़कियों को ज्यादा पढ़ते हुए नहीं देखा था इसीलिए वह मुझे नहीं पढ़ाना चाहते थे। मैं उन्हें हर खुशी देना चाहती हूं।

आतंक का माहौल: जम्मू कश्मीर से १४ युवा सफल
जम्मू कश्मीर में आतंक का माहौल हमेशा से रहा है। अशांति के हालात के बावजूद इस वर्ष १४ युवाओं ने सिविल सर्विसेज परीक्षा में सफलता हासिल की है। सही मायनों में यह युवाओं का आतंक को करारा जवाब दिया है।
पिछले साल जब घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की मौत हुई तो घाटी का माहौल बिगड़ने लगा। माहौल इतना बिगड़ा कि घाटी में छह माह तक कर्फ्यू लागू रहा। लेकिन, इसके बाद भी युवाओं के हौसलों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। जम्मू कश्मीर से यह पहला मौका है जब एक साथ १४ युवाओं का चयन यूपीएससी में हुआ है। कश्मीर घाटी के बिलाल मोहीउद्दीन भट को परीक्षा में १०वां स्थान मिला है। इसके अलावा ३९वीं रैंक पाने वाले जफर इकबाल, ८६वीं रैंक के साथ सैय्यद फखरुद्दीन हमीद, ११५वीं रैंक के साथ बीस्मा काजी, १२५वीं रैंक सुहैल कासिम मीर सहित १४ युवा हैं जो कश्मीर के लिए एक नई उम्मीद की किरण लेकर आये हैं।
कश्मीर का युवा गुमराह नहीं
कश्मीर घाटी के बिलाल मोहीउद्दीन भट जो नॉर्थ कश्मीर के हारीपोरा उनीसू गांव के रहने वाले हैं, उन्हें यूपीएससी परीक्षा में १०वां स्थान हासिल हुआ। बिलाल ने साबित कर दिखाया कि कश्मीर के युवा गुमराह नहीं होंगे। वे अपना भविष्य संवारने में जुटे हुए हैं।

नक्सली इलाका: नम्रता ने रचा इतिहास
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में पली-बढ़ी नम्रता जैन के सपने को इस बार पर लग गए। सिविल सेवा परीक्षा में उसने ९९वीं रैंक हासिल की। हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए दुर्ग एवं इंजीनियरिंग करने के लिए भिलाई का रुख करने से पहले जिले के अशांत गीदम शहर में पढ़ाई करके इतिहास रच दिया।
इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग करने के बाद नम्रता सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली पहुंची। नम्रता ने कहा कि मैं इस परीक्षा में पास होने पर बहुत खुश हूं। यह मेरे और मेरे परिवार के लिए सपने के साकार होने जैसा है।
लगन और कड़ी मेहनत का नतीजा
नम्रता के रिश्तेदार गीदम निवासी सुरेश जैन ने बताया कि वह अपने स्कूल और कॉलेज के समय से ही बहुत पढ़ाकू रही हैं। हम सभी जानते थे कि एक दिन वह सिविल सेवा परीक्षा पास कर लेगी। उन्होंने कहा कि नम्रता की लगन और कड़ी मेहनत का नतीजा है कि वह सिविल सेवा में पास हुई। हमारा क्षेत्र नक्सली गतिविधियों के कारण हमेशा चर्चा में रहा है। नम्रता ने अपने सपनों को साकार कर दिखाया है।

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