भोपाल,प्रदेश की 11 सेंट्रल जेलों में क्षमता से छह हजार बंदी ज्यादा हैं। इन सबके बीच जेल मुख्यालय में डीजी जेल द्वारा बंदियों की इतनी बड़ी तादाद होने और सेंट्रल जेलों के भी क्षमता से ज्यादा भरे होने की समीक्षा की चली तो पता चला कि सेंट्रल जेलों में प्रावधान के विपरीत विचाराधीन बंदी भी कैद हैं, जबकि नियमानुसार सजा पाने वाले व खूंखार बंदियों को ही रखे जाने का प्रावधान हैं।सूत्रों की माने तो मप्र की जेलें बंदियों से पट चुकी हैं।आलम यह है कि प्रदेश की 123 जेलों में 36 हजार से ज्यादा बंदी हैं, जबकि क्षमता सिर्फ 25 हजार की है। इसमें भी बात यदि सेंट्रल जेलों की कि जाए तो उनकी हालात और भी ज्यादा खराब है। जानकारी के अनुसार जेल मुख्यालय द्वारा शासन को इस स्थिति से अवगत करवाते हुए 10 जिला जेल बनाने का प्रस्ताव भेजा है। जगह की कमी इस काम में आड़े न आए, इसके लिए सेंट्रल जेल के कैंपस में ही जिला जेल बनाई जाएगी। प्रदेश में फिलहाल 39 जिला जेल हैं, लेकिन मप्र, जबलपुर, ग्वालियर सहित अन्य बड़े जिलों में सिर्फ सेंट्रल जेल ही हैं। जिला जेल बनाने की शुरूआत भोपाल सेंट्रल जेल से की जाएगी। सेंट्रल जेल में सभी तरह के बंदियों से रखे जाने पर सीधा असर सुरक्षा पर पड़ता है। तय क्षमता से ज्यादा बंदी होने से के बावूजद जेलों में प्रहरियों की संख्या उसके अनुपात में नहीं है। नतीजा पिछले चार सालें में 300 से ज्यादा जेल से फरार हो चुके हैं।
बड़े मामलों में सिमी आतंकियों का पहले खंडवा जेल और बाद में भोपाल सेंट्रल जेल से भाग निकलना बड़ा उदाहरण है।इस संबंध में डीजी जेल संजय चौधरी का कहना है कि विभागीय समीक्षा के दौरान यह पता चला कि सेंट्रल जेल में विचाराधीन बंदी भी है। जबकि नियमानुसार यहां सिर्फ सजा पा चुके बंदियों को रखा जाता है। इस वजह से जेलें बंदियों से पट चुकी हैं। इसे लेकर अब हमने शासन को पत्र लिखकर इंदौर को छोड़कर सभी सेंट्रल जेलों के कैंपस में जिला जेल बनाने का प्रस्ताव भेजा है।