सांसद ज्योति धुर्वे का जाति प्रमाण पत्र निरस्त

बैतूल,जाति प्रमाण पत्र की जांच के लिए गठित राज्य स्तरीय छानबीन समिति ने बैतूल की सांसद ज्योति धुर्वे के जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया है। समिति ने बैतूल कलेक्टर को निर्देश दिए हैं कि सांसद का प्रमाण पत्र निरस्त कर राजसात करें और कानूनी कार्रवाई की जाए। अंतिम नोटिस पर एक अप्रैल 2017 को समिति के समक्ष सुनवाई के लिए पहुंचीं सांसद धुर्वे आदिवासी होने का प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाईं, पर सांसद के सामने हाईकोर्ट का रास्ता खुला है। वे समिति के फैसले के खिलाफ रिट पिटीशन दायर कर सकती हैं।
पिता के आदिवासी होने के प्रमाण नहीं
सांसद धुर्वे छानबीन समिति के समक्ष ऐसे कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर सकीं, जिससे उनके गोंड जाति का होकर अनुसूचित जनजाति से होने की पुष्टि हो सके। समिति की सचिव दीपाली रस्तोगी ने निर्देशों में लिखा है कि सांसद धुर्वे खुद और अपने पिता के गोंड जाति से होने के प्रमाण नहीं दे सकीं। उनके सभी दस्तावेजों में पिता की जगह पति प्रेमसिंह धुर्वे का नाम लिखा है।
क्या हैं संवैधानिक प्रावधान
जाति का निर्धारण पिता के आधार पर होता है। जबकि धुर्वे ने मां और पति के रिश्तेदारों-परिजनों के प्रमाण दिए हैं।
निर्दलीय प्रत्याशी ने की थी शिकायत
सांसद धुर्वे ने गोंड जाति से होने का प्रमाण देकर बैतूल संसदीय सीट से वर्ष 2009 और 2014 में चुनाव लड़ा। उन्होंने 2009 के चुनाव में एसडीएम भैंसदेही से वर्ष 2002 में जारी स्थाई जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था। इसी सीट से निर्दलीय प्रत्याशी बैतूल के एडवोकेट शंकर पेंदाम और कांग्रेस के प्रत्याशी ओझाराम इवने ने धुर्वे के प्रमाण पत्र को फर्जी बताते हुए शिकायत की थी, लेकिन तब निर्वाचन अधिकारी ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया। बाद में इन नेताओं ने श्रीमती धुर्वे के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इस बीच धुर्वे का कार्यकाल पूरा हो गया और हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। जब धुर्वे ने दूसरी बार वर्ष 2014 में इसी सीट से उसी प्रमाण पत्र पर चुनाव लड़ा, तो शंकर पेंदाम ने शासन से शिकायत की। जिस पर छानबीन समिति ने निर्णय लिया।

संसद की सदस्यता खत्म होगी
पूर्व एडिशनल एडवोकेट जनरल अजय मिश्रा कहते हैं कि जिस जाति प्रमाण पत्र के आधार पर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ी हैं, वही निरस्त हो गया तो संसद की सदस्यता खत्म हो जाएगी। अब सांसद पर धोखाधड़ी का मुकदमा चलना चाहिए और अभी तक सांसद रहते हुए लिए गए आर्थिक लाभ की रिकवरी होनी चाहिए। मिश्रा बताते हैं कि सांसद चाहें, तो इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में रिट पिटीशन दायर कर सकती हैं।

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