भारत की सांस्कृतिक एकता के लिये प्रयास करें कार्यकर्ता- शिवराज

इंदौर। भारत हजारों वर्ष से अपनी सांस्कृतिक एकता के लिये विश्व में विख्यात है। संस्कृतियों का समूह इस राष्ट्र की विशेषता है समय-समय पर हमारी सांस्कृतिक एकता को खंडित करने के प्रयत्न होते रहे है लेकिन समाज सुधारकों एवं मनीषियों ने सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया है। आज भी भारत की समृद्धि, शक्ति और गौरव की वृद्धि के लिये भारतीय जनता पार्टी की सरकारें, अनवरत प्रयत्न कर रही है, लेकिन तमाम ऐसी ताकते भी सक्रिय हो गई है जो इस देश को सांस्कृतिक रूप से नष्ट करना चाहती है, तोड़ना चाहती है। कार्यकर्ताओं को इस दृष्टि से सतर्क व सचेत रहना चाहिए, कि जाति और समाज के नाम पर भारत को बांटने के कुत्सित प्रयास सफल नहीं होने पाये। इसके लिये हमें स्वयं को पूरी तरह खपाकर राष्ट्र भक्ति के सभी प्रयासों को नीचे तक ले जाने के लिये प्रयत्न करना होंगे। यह बात आज मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भाजपा के पं. दीनदयाल उपाध्याय महाप्रशिक्षण महाअभियान के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए कहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमारसिंह चैहान ने की।

शिवराज  ने कहा कि हमारा देश हजारों वर्ष से सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र रहा है लेकिन जब-जब इस संस्कृति को आंच आई है तब-तब भारत टूटा है बंटा है, हम जानते है कि कंधार से लेकर तिब्बत तक और जावा, सुमात्रा, बाली, इंडोनिशिया तक आज भी भारतीय सभ्यता बिखरी पड़ी है। यह भारत की संस्कृतिक एकता का ही उदाहरण है कि कन्या पार्वती दक्षिण के अंतिम छोर पर खड़ी होकर कैलाश पर बैठे शिवजी के लिये तपस्या करती है और वे एकात्म होते है, आदि शंकराचार्य के उन प्रयत्नों को भारत की सांस्कृतिक एकता के बड़े प्रयासों में माना जाता है जिसमें उन्होंने चारों दिशाओं में धाम स्थापित किये। आज भी उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक भारतवासी इन धामों की यात्रा कर अपनी सांस्कृतिक चेतना का परिचय देते है। उन्होंने कहा कि भारत का समाज सर्वसमावेशी और सर्वग्राही है। हम द्वैत और अद्वैत तथा निराकार और साकार सभी का सम्मान करते है। हमारें प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्यायजी ने हमें जो एकात्म चिंतन दिया है वह भी यही कहता है कि मनुष्य पशु, वनस्पति, नदियों, पहाड़ सभी में एक ही चेतना है, इसीलिये वसुधेव कुटुम्बकम की बात करते है।  उन्होंने यह भी कहा कि कार्यकर्ता का चरित्र समाज में विचारधारा के बारे में धारणा तय करना है इसलिये हमें अपने वरिष्ठजनों के आचरण से यह सिखना चाहिए कि समाज को जोड़ने की तड़प कैसे पैदा की जाती है चाहे वे दीनदयालजी रहे हो या कुशाभाऊ ठाकरे जी उनका जीवन यहीं बताता है कि गुटबाजी से मुक्त, योग्यता से भरपूर, अंहकार से रहित, धैर्यवाद, उत्साही और सदा आनंद में रहना वाला ही आदर्श कार्यकर्ता होता है।

द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक अरूण जैन ने भाजपा कार्यकर्ताओं से आव्हान किया कि वे समाज में समरसता लाने के लिये अपने गौरवशाली इतिहास का अध्ययन करें। हम पायेंगे कि अनेकों संतों और मनीषियों ने भारत की सामाजिक एकता के लिये उल्लेखनीय प्रयत्न किये है, चाहे वे संत रविदास हो, गुरू तेगबहादूर हो, विश्वामित्र हो, रामानंदजी हो, स्वामी रामानुजाचार्य हो या फिर डॉ. भीमराव अम्बेडकर सभी का अपना-अपना महत्व है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में आक्रमणकारी तभी सफल हुए जब उन्होंने हमारे सामाजिक भेदभाव को भांप दिया।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *