श्री कोत्तानकुलांगरा देवी मंदिर में पुरुषों को भी महिलाओं के कपडे पहन कर करना पड़ती है पूजा

कोल्लम, सनातन धर्म में तीर्थ-स्थानों में पूजा-पाठ को लेकर कई तरह के नियम और परंपराएं हैं जिनका पालन सदियों से हो रहा है। इसी के तहत देश के कुछ मंदिरों में जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, वहीं केरल में एक ऐसा मंदिर है जिसमें पुरुषों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। अगर इस मंदिर में दर्शन करना ही है तो प्रवेश करने के लिए पुरुषों को भी महिलाओं की तरह ही 16 श्रृंगार कर जाना होता है।
केरल के कोल्लम जिले में स्थित यह मंदिर श्री कोत्तानकुलांगरा देवी का है। इस मंदिर के नियम के अनुसार यहां सिर्फ महिलाएं और किन्नर ही प्रवेश पा सकते हैं। वहीं पुरुषों को प्रवेश के लिए स्त्री का वेश धारण करना पड़ता है।
इस मंदिर में न सिर्फ महिलाएं और किन्नर बड़ी संख्या में देवी पूजन के लिए आते हैं बल्कि पुरुष भी नियम के अनुसार महिलाओं के कपड़े पहन कर देवी की पूजा करते हैं।
श्री कोत्तानकुलांगरा देवी मंदिर में हर साल चाम्याविलक्कू का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। जिसमें शामिल होने के लिए दूर-दराज से बड़ी संख्या में पुरुष श्रद्धालु आते हैं। जिन्हें मंदिर में प्रवेश के लिए न सिर्फ स्त्रियों के कपड़े पहनने पड़ते हैं बल्कि उनकी तरह 16 श्रृंगार करते हुए गहने, गजरा आदि भी लगाना पड़ता है।
चाम्याविलक्कू त्योहार में शामिल होने वाले पुरुष श्रद्धालुओं को सजने-संवरने के लिए एक अलग से मेकअप रूम बनाया जाता है। जहां पर वे महिलाओं की तरह 16 श्रृंगार करते हैं। इस मंदिर में प्रवेश के लिए भले ही कपड़ों आदि को लेकर नियम और शर्तें हों लेकिन उम्र का कोई बंधन नहीं है। यहां हर उम्र का पुरुष महिलाओं की तरह श्रृंगार करके प्रवेश पा सकता है।
श्री कोत्तानकुलांगरा देवी के मंदिर की खास बात यह भी है कि इसके गर्भगृह के ऊपर छत और कलश नहीं है। मान्यता यह भी है कि यहां देवी स्वयं प्रकट हुई थीं। देवी के पूजन के लिए यहां पर बड़ी संख्या में किन्नर आते हैं।
मान्यता है कि श्री कोत्तानकुलांगरा देवी की शिला को जब पहली बार कुछ चरवाहों ने देखा तो उन्होंने वस्त्र, फूल आदि अर्पित करके देवी का पूजा किया। जिसके बाद देवी की इस शिला से दिव्य शक्ति निकलने लगी। इसके पश्चात् इस मंदिर का निर्माण हुआ हालांकि इस मंदिर के बारे में यह भी कथा मिलती है कि जब कुछ लोगों द्वारा यहां इस शिला पर नारियल फोड़ा गया तो इस शिला से खून निकलने लगा था। उस चमत्कार को देखने के बाद लोगों ने इस शक्तिपीठ पर पूजन प्रारंभ कर दिया।

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