( डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन द्वारा ) देश में कोरोना को लेकर बढ़ रही दहशत का असर अब खाने-पीने की चीजों पर भी दिखने लगा है। हालत यह है कि जो चिकन कुछ दिन पहले तक 200-250 रुपये किलो बिकता था, वह कई जगह सौ रुपये से कम दाम पर मिल रहा है। वहीं, एक सब्जी ऐसी है, जिसके दाम आसमान पर पहुंच गए हैं।
कोरोना का डर लोगों में ऐसा फैला है कि वे चिकन से दूरी बना रहे हैं। लेकिन, चिकन खाने वाले वैसा ही स्वाद पाने के लिए कभी सोया तो कभी कटहल के पीछे दौड़ते हैं। इन दिनों कटहल चिकन प्रेमियों को पसंद आ रहा है।
कोरोना का चिकन से अभी तक कोई कनेक्शन नहीं मिला है, लेकिन बावजूद लोगों में चिकन खाने को लेकर जबर्दस्त डर है। लोग अब चिकन की जगह कटहल को तरजीह दे रहे हैं। कटहल (जैकफ्रूईट ) की अचानक मांग बढ़ने से इसके दाम आसमान पर हैं
हालत यह है कि कल तक जो कटहल बाजार में 50 रुपये किलो तक मिलता था, अब वह 120 रुपये किलो तक बिक रहा है। दरअसल चिकन के बदले लोगों कटहल प्रेम की एक वजह इसका नॉनवेज जैसा स्वाद है।
दूसरी तरफ चिकन की कहानी उल्टी है। जो चिकन ढाई सौ रुपये तक बिका करता था, वह अब कई जगह 60 रुपये किलो तक बिक रहा है।
कोरोना वायरस ने मुर्गी पालन उद्योग को जबर्दस्त झटका दिया है। गोरखपुर में तो पॉल्ट्री फार्म असोसिएशन को हाल में चिकन मेला तक लगाना पड़ा। असोसिएशन के अध्यक्ष विनीत सिंह बताते हैं कि मेले में उन्होंने 30 रुपये प्लेट तक चिकन बेचा।
आलम यह है कि कर्नाटक के बेलागावी में एक पॉल्ट्री फार्म चलाने वाले ने करीब 6 हजार चूजों को ट्रक में भरकर खेतों में जिंदा गाड़ दिया। इस किसान का कहना था, ‘कोरोना वायरस के खौफ से पहले जिंदा मुर्गे 50 से लेकर 70 रुपये प्रति किलो के रेट में बिक रहे थे। वहीं अभी इनकी कीमत 5 से लेकर 10 रुपये प्रति किलो तक है। ढाई किलो का कोई चूजा बड़ा होने पर मुर्गा बनकर मुझे अधिकतम 25 रुपये तक दे देगा।’
75 रुपये का खर्च, 5 में बिक रहे मुर्गे
पोल्ट्री इंडस्ट्री के जानकारों के अनुसार कोरोना वायरस के खौफ की वजह से उन किसानों पर संकट आ गया है, जिन्होंने लाखों रुपये का निवेश किया हुआ है। एक विशेषज्ञ ने बताया, ‘एक किलोग्राम के चूजे को तैयार करने में 75 रुपये का खर्च आता है। अब ऐसे किसानों की दुर्दशा पर विचार करिए जिन्हें 5 और 10 किलो प्रति किलो में इन चूजों को बेचना पड़ रहा है।’
क्वालिटी ऐनिमल फीड्स प्राइवेट लिमिटेड के जनरल मैनेजर मधुकर पवार ने कहा, ‘अकेले बेलागावी में हर महीने 60 से 80 किलोग्राम चिकन का उत्पादन होता है। चूजों को 5 रुपये में बेचा जा रहा है और ट्रेडिंग कंपनियां किसानों को भुगतान करने में असमर्थ हैं। मेरी कंपनी में 1500 कर्मचारी हैं और एक हजार से अधिक किसान हम पर निर्भर हैं। इस महीने तो हम भुगतान कर देंगे लेकिन अगली बार से मुश्किल हो जाएगी।’
कोरोना के इस खौफ ने दूसरी तरफ कटहल उगाने वाले किसानों के लिए अच्छे दिन ला दिए हैं। डिमांड बढ़ने से कटहल के दाम दोगुने से ज्यादा हैं।
जब सामान्य दिनों में समाज में शाकाहार ,का महत्व समझाया जाता था तब मांसाहारी ,शाकाहारियों को हीं दृष्टि से देखते थे और कहते हैं की शाकाहारी घास फूस कहते हैं और उन्हें क्या मिलता हैं ,पर वर्तमान हालात में शाकाहार की महत्ता समझ में आने लगी .
हमको प्रकृति से नजदीक रहना होगा ,जीव हिंसा से ही मांसाहार मिलता हैं ,जीव हिंसा किसी भी दृष्टि से मान्य नहीं हैं .
खुदा करे हसीनों के बाप रोज मरा करे ,
इसी बहाने उनके घर रोज आया जाया करे.
जैसे मर रहे हैं मछली अंडा मांस खाने के लिए
वैसे ही मानव भी मर रहे हैं ,तब इतना खौफ क्यों
जब तक समानुभूति नहीं होगी यह तांडव चलता रहेगा
अभी हैं सम्हालने व् सम्हलने का मौका ,
मरने के बाद सम्हले तो क्या सम्हले .
कोरोना का गजब खौफ, शाकाहार का महत्व बढ़ा
