नई दिल्ली,भारत में दिल की बिमारियों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। अगर समय रहते ध्यान दिया जाए तो कई तकनीकें व टेस्ट ऐसे हैं जो इससे बचाव कर सकते हैं। एक शोध के अनुसार हार्ट अटैक से भारत में लगभग 23 फीसदी लोगों की मौत हो जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 30 वर्ष से कम उम्र के लोगों में हृदय रोगों का खतरा सबसे तेजी से बढ़ रहा है। बीते 26 वर्षों में ही हृदय रोग में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिसकी मुख्य वजह (धमनियों में रुकावट, हाई ब्लड प्रेशर, हाई शुगर, बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल, खराब जीवनशैली आदि हैं। धमनियों में रुकावट का खतरा तेजी से बढ़ा है।
क्या होती हैं धमनियां
धमनियां (आर्टरीज) हमारे पूरे शरीर में रक्त संचार धमनियों और नसों के जरिए होता है। धमनियां रक्त को दिल से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं। धमनियों की दीवारें मोटी और लचीली होती हैं तथा इनका भीतरी व्यास कम होता है। इनका रंग गुलाबी या लाल होता है और ज्यादा दबाव होने पर इनमें खून झटके के साथ बहता है। हमारे शरीर में मौजूद कुल रक्त का करीब 15 फीसदी अंश धमनियों में हर समय भरा होता है।
कोरोनरी आर्टरीज की समस्या
भारत में बीते 30 वर्षों में कोरोनरी आर्टरीज डिजीज (सीएडी) 300 फीसदी की दर से बढ़ी हैं। दिल की यह बीमारी धमनियों में रुकावट के चलते होती है। शहरी लोगों में इसके मामले ज्यादा मिलते हैं। कार्बोहाइड्रेट और रिफाइंड शुगर इसकी बड़ी वजह हैं। दरअसल, धमनियां वे रक्त वाहिकाएं होती हैं, जो ऑक्सीजन तथा अन्य पोषक तत्वों से भरपूर रक्त को शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंचाती हैं। इनके जरिए शुद्ध रक्त शरीर के विभिन्न हिस्सों में पहुंचता है। जब इनमें प्लॉक के रूप में कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है, तब सूजन व दर्द के अलावा दिल की कई अन्य बीमारियां भी बढ़ने लगती हैं।
सीएडी के कारण और लक्षण
हाई कोलेस्ट्रॉल इसका एक मुख्य कारण है। हाई ब्लड प्रेशर से दिल पर दबाव बढ़ता है, जिससे सीएडी की आशंका बढ़ जाती है। धूम्रपान से भी दिल के रोगों का खतरा बढ़ता है। डायबिटीज या इंसुलिन रजिस्टेंस के अलावा लगातार घंटों बैठे रहना व अनियमित जीवनशैली भी इसकी वजह है। रक्त प्रवाह में रुकावट से आमतौर पर छाती में दर्द, एंजाइना, सांस लेने में परेशानी, घबराहट, अनियमित धड़कन, दिल का तेजी से धड़कना, कमजोरी, चक्कर आना, मतली या अधिक पसीना आने के लक्षण दिखाई देते हैं।
क्या है इलाज
एंजियोप्लास्टी के जरिए रक्त प्रवाह में सुधार किया जाता है, जिसके लिए स्टेंट लगाए जाते हैं। बाईपास सर्जरी इसका परंपरागत इलाज है। इसके अलावा नई तकनीकें जैसे ओसीटी, आईवीयूएस, आईएफआर भी हैं, जिनसे स्टेंट से बचा जा सकता है। साथ ही लोडिंग डोज का विकल्प भी है। मरीज की स्थिति के अनुसार ही निर्णय लिया जाता है।
एंजियोप्लास्टी के 7-8 घंटे बाद मरीज चल-फिर सकता है। सावधानी के तौर पर कुछ दिनों तक ज्यादा सीढ़ियां नहीं चढ़नी चाहिए। व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह स्वस्थ आहार ले, तनाव न ले और हल्का व्यायाम करे। डॉक्टर द्वारा दिए निर्देशों का पालन करे।
एंजियोग्राफी से पता चलती है रुकावट
एंजियोग्राफी तकनीक के जरिए मरीज के हाथ या पैर की नसों में एक तार डाला जाता है। इस तार के जरिए नसों में एक दवा पहुंचाई जाती है, जिसे रेडियो एपेक्ड आई कहते हैं। धमनियों में जहां तक दवा आसानी से चली जाती है, वह हिस्सा सही होता है। जहां यह दवा रुक जाती है, वह हिस्सा प्रभावित माना जाता है। एंजियोग्राफी से ही पता चलता है कि नसों में कितनी रुकावट है। इसमें कुल दो घंटे लगते हैं।
भारत में बढ़ रहे दिल की बीमारियों के रोगी,23 % लोगों की मौत का कारण होता है हार्ट अटैक
