अशोकनगर,शहर में सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं जो नियमों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। ऐसे स्कूलों की बिना जांचे ही हर साल मान्यता रिन्यू की जा रही है। इसके अलावा बिना फिजीकल वेरीफिकेशन किए ऐसे स्कूलों को हर साल शिक्षा विभाग के अधिकारी मान्यता देते चले आ रहे हैं। जबकि कुछ ऐसे स्कूलों में छात्रों के हिसाब से बैठने के लिए प्रर्याप्त कमरें नहीं है। शहर में कुछ ऐसे स्कूल है जिनमें छात्रों को धूप और ताजा हवा भी नहीं मिलती।
जिले में निजी स्कूलों को खोलने की होड़ सी मची है। कहीं रोड किनारे तो कहीं घरों में, कहीं पुराने भवन तो कहीं गलियों में निजी स्कूल चल रहे हैं। खास बात यह कि इन्हें मान्यता भी मिल रही है जबकि मापदंड के आधार पर ये स्कूल चलने योग्य नहीं हैं। न तो पर्याप्त संसाधन ना ही संबंधित आर्हता वाले शिक्षक। कुछ निजी स्कूल तो ऐसे भी हैं, जिनकी मान्य समाप्त करने की प्रक्रिया सालों से चल रही है। लेकिन उन्हे बिना किसी रोक-टोक के फिर से मान्यता मिल गई है और उन्होंने छात्रों को प्रवेश देना भी शुरु कर दिया है। ऐसा ही एक स्कूल है ब्रिलिऐंट पब्लिक स्कूल जिसमें पिछले साल छात्रों को मुर्गा बनाकर मारपीट का एक वीडीयों वायरल हुआ था। जिसके बाद स्थानीय अधिकारियों से लेकर प्रदेश स्तर तक के शिक्षा अधिकारियों ने स्कूल का निरीक्षण किया था। निरीक्षण में स्कूल के पर्याप्य सुविधायें न होना पाया जाने पर मान्यता समाप्त करने संबंधि निर्देश शिक्षा विभाग को दिए गए थे। लेकिन ऐसे स्कूलों की न तो मान्याता समाप्त की गई और न ही इन स्कूल संचालकों पर कोई कार्रवाई। बल्कि इस नवीन सत्र में वह फिर से छात्रों को भर्ती करने में जुट गए हैं। बड़ी बात यह कि विभाग ने केवल कागजी खानापूर्ति के आधार पर ही मान्यता दे दी। कभी भौतिक सत्यापन करने का प्रयास भी नहीं किया। यही कारण है कि इन स्कूलों को एक बार फिर मान्यता मिल गई है।
ऐसे करते हैं मान्यता के लिए जुगाड़:
जानकारी के अनुसार स्कूल संचालक खेल मैदान के लिए किसी भी व्यक्ति या किसान से उसका खेत लीज पर लेने की नोटरी या शपथ-पत्र दे देते हैं। दूसरा यह कि भले ही उनका स्कूल दो कमरों में चल रहा हो, इसी तरह की एक किराया चिट्ठी अनुबंध-पत्र में लगा देते हैं ताकि कमरों की संख्या बढ़ जाए। शिक्षकों के बारे में उनके पत्र सलंग्न रहते हैं जिनमें यह लिखा रहता है कि उनके शिक्षक बीएड या डीएड कर रहे हैं। अंकसूचियां आते ही स्कूलों में जमा करा दी जाएंगी। इसी तरह अन्य नियमों एवं मापदंडों की भी खानापूर्ति हो जाती है। यदि उनका भौतिक सत्यापन हो तो सारी पोल सामने आ सकती है। बावजूद अभी तक कार्रवाई नहींं हुई है।
प्रयोगशाला और पुस्तकालय का अभाव:
महंगी फीस लेकर छात्रों को अच्छी शिक्षा देने वाले शहर के नामचीन स्कूलों में भी प्रयोगशाला और पुस्कालय का अभाव बना है। शिक्षा विभाग के नियमानुसार छात्रों को कंप्यूटर का प्रेक्टिकल नॉलेज देने के लिए कंप्यूटर कक्ष होना चाहिए। अब तक कई स्कूलों में कंप्यूटर तक नहीं खरीदे गए।
ना खेल मैदान, ना पर्याप्त शिक्षक:
निजी स्कूल संचालित करने के लिए कक्षा एक से बारहवीं तक के लिए शिक्षा विभाग ने नियम बनाए है। शहर में ऐसे स्कूल भी है जिनके पास पर्याप्त स्थान बैठने के लिए नहीं है। कुछ स्कूलों के पास खेल का मैदान नहीं है तो कुछ ऐसे स्कूल है जिनमें शिक्षकों की कमी है। प्राइमरी स्तर पर एक ही शिक्षक दो क्लासों के छात्रों को एक साथ पढ़ाते हैं। जबकि कक्षा एक से पांचवीं तक 40 छात्रोंं की एक क्लास होना चाहिए। वहीं आठवीं तक 35 छात्रों की एक क्लास होना चाहिए। इसी तरह के नियम हाईस्कूल व हायर सेकंडरी स्कूल के लिए है।
स्कूल की मान्यता का यह है मापदंड:
हर 30 बच्चे पर एक शिक्षक।
प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के शिक्षक बीएड या डीएड वाले।
हर 30 बच्चों के लिए अलग कक्ष। उसमें बैठने के स्थान के अलावा भी पर्याप्त स्थान होना चाहिए।
प्रत्येक कक्ष हवादार और प्रकाशयुक्त होना चाहिए तथा उनमें पंखे और लाइट की व्यवस्था होनी चाहिए।
बच्चों के लिए पानी पीने की व्यवस्था बेहतर होना चाहिए।
सुविधाघर पर्याप्त एवं बालक-बालिकाओं के लिए अगल होना चाहिए।
हर कक्षा में पढ़ाने के लिए सहायक शिक्षण सामग्री का उपयोग होना चाहिए।
व्यापक खेल मैदान एवं पर्याप्त खेल सामग्री होना चाहिए। साथ ही प्रशिक्षित खेल शिक्षक भी आवश्यक।