इंदौर, पाकिस्तान से भारत पहुंची मूक-बधिर युवती गीता लगातार दूसरे साल भी अपने परिवार के साथ दीपावली नहीं मना सकी। इसके बाद सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होने शुरु हो गए है। भारत सरकार दो साल में भी उसके घर वालों को ढूंढ नहीं पाई है। इधर, झारखंड के जिस परिवार ने गीता के माता-पिता होने का दावा किया है, उनकी तस्वीर अब तक प्रशासनिक अफसरों ने गीता को नहीं दिख सके है। फिलहाल स्कीम-71 स्थित मूक-बधिर संस्था में रह रही गीता अब प्रशासन के गले की हड्डी बन गई है। परिवार नहीं मिलने से सरकार पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है। सरकार जल्द से जल्द उसे परिवार से मिलाने में जुटी है। सरकार की इस लापरवाही के कारण पाकिस्तान का एनजीओ ईदी फाउंडेशन भी सरकार से सवाल पूछने लगा है। इस फाउंडेशन में गीता ने जिंदगी के 10-12 साल बिताए थे।
वहीं झारखंड के परिवार से शहर के सामाजिक कार्यकर्ता और मूक-बधिर सहायता केंद्र के समन्वयक ज्ञानेंद्र पुरोहित और मोनिका पुरोहित संपर्क में बने हुए हैं। झारखंड के परिवार में माता-पिता और भाई-बहन सभी उनसे बात करते हैं। गीता ने पाकिस्तान में रहने के दौरान गांव का नाम बांदो बताया था। यह परिवार भी उसी गांव का है। इधर, पुरोहित दंपती ने जिला प्रशासन और प्रदेश शासन को भी झारखंड के परिवार की तस्वीरें और वीडियो भेजे हैं लेकिन अब तक प्रशासन ने गीता को इसकी जानकारी नहीं दी है। जबकि झारखंड में संबंधित कलेक्टर और प्रशासनिक अधिकारियों की इस मामले में कार्रवाई शुरू हो गई है। बताया जा रहा है कि दावेदारी करने वाला परिवार इंदौर आकर गीता से मिलना चाह रहा है लेकिन प्रशासनिक अनुमति नहीं मिलने से वे आने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। जबकि वे लगातार फोन से गीता के हालचाल जान रहे हैं। इधर, पुरोहित दंपती जी-जान से गीता को उसके परिवार से मिलाने के लिए जुटे हैं। उनका कहना है कि जिस दिन गीता को परिवार मिलेगा, उस दिन हमारी असली दीपावली मनेगी। अगर सरकार हमारी मदद करे तो गीता से बात करके काफी जानकारी निकाली जा सकती है।
गीता ने दूसरे साल भी बिना माता-पिता के दिवाली मनाई,दो साल में भी माता-पिता को नहीं तलाश पाए
