IAS-IPS अफसरों के NGO पर रहेगी खुफ़िया नजर

भोपाल, देश के कई आईएएस-आईपीएस अफसरों ने अपने परिजनों के नाम पर एनजीओ रजिस्टर्ड करा रखे हैं। इनमें से कई मध्य प्रदेश से भी हैं। अब इन अफसरों के ये एनजीओ मोदी सरकार की नजर में आ चुके हैं। केंद्र सरकार ने खुफिया एजेंसियों कहा है कि ऐसे एनजीओ के काम-काज पर नजर रखें जिनको किसी न किसी रूप में सरकारी अफसर ही चला रहे हैं। मध्यप्रदेश में ऐसे आधा सैकड़ा से अधिक अफसर हैं जो खुद या उनके परिवार का कोई सदस्य गैर सरकारी संगठनों से जुड़ा हुआ है।
इन अफसरों के चल रहे एनजीओ
निर्मला बुच, पूर्व मुख्य सचिव : पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच ने 1984 में महिला चेतना मंच बनाया था। वे इस समय संस्था की अध्यक्ष हैं। महिला चेतना मंच महिला कल्याण से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम करता है। इस एनजीओ को महिला एवं बाल विकास और पंचायत विभाग के प्रोजेक्ट के लिए सरकारी अनुदान मिलता है। इसके अलावा एमएन बुच के एनजीओ नेशनल सेंटर फॉर ह्यूमन सेटलमेंट एंड एनवायर्नमेंट को भी वे ही चला रही हैं।
आशा गोपाल, पूर्व आईपीएस : 1977 बैच की आईपीएस रहीं आशा गोपाल ने अपने पति के साथ मिलकर 1999 में एक एनजीओ शुरू किया था। नित्य सेवा सोसायटी के नाम से शुरू किया गया यह एनजीओ सड़कों पर घूमने वाले अनाथ बच्चों(स्ट्रीट चिल्ड्रन) की बेहतरी के लिए काम कर रहा है।
निशांत बरवड़े, इंदौर कलेक्टर : भोपाल कलेक्टर रहते हुए निशांत बरवड़े ने रन भोपाल रन एनजीओ शुरू किया था। वेबसाइट के मुताबिक वे इस एनजीओ के अध्यक्ष हैं। यह एनजीओ भोपाल हॉफ मैराथन सहित कई अन्य काम करता है। इसके साथ ही संस्था की एक पत्रिका भी प्रकाशित होती है।
शरदचंद बेहार, पूर्व मुख्य सचिव : पूर्व मुख्य सचिव बेहार तीन से चार एनजीओ से जुड़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के बीच काम करने वाली कर्मदक्ष संस्था के वे अध्यक्ष हैं। इसके अलावा मप्र भारत ज्ञान विज्ञान सभा, दिग्दर्शिका और लोकशक्ति रायगढ़ के भी चेयरपर्सन हैं। बेहार अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के बोर्ड मेंबर भी हैं।
मनोहर अगनानी, सागर कमिश्नर : मनोहर अगनानी की पत्नी शिल्पी अगनानी बिटिया नाम का एनजीओ संभाल रही हंै। यह एनजीओ ऐसे अभिभावकों के लिए शुरू किया गया है,जिनकी सिर्फ एक बेटी है। एनजीओ भोपाल के अलावा ग्वालियर और जबलपुर में भी संचालित होता है। संस्था बेटियों को लेकर जागस्र्कता कार्यक्रम चलाती है।
पुखराज मारू, पूर्व कमिश्नर,भोपाल : भोपाल के पूर्व कमिश्नर और रिटायर्ड आईएएस पुखराज मारू इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज के भोपाल चैप्टर के संयोजक हैं। यह एनजीओ कला, साहित्य और हेरिटेज के संरक्षण के लिए काम करता है।
रवींद्र पस्तोर, पूर्व कमिश्नर : हाल ही में उज्जैन कमिश्नर पद से रिटायर हुए रवींद्र पस्तोर भी किसानों से जुड़ा एक एनजीओ चलाते हैं। एग्री बिजनेस नाम के इस एनजीओ के जरिए वे किसानों को आधुनिक खेती के तरीके सीखाते हैं।
आरएस खन्ना, पूर्व मुख्य सचिव : आरएस खन्ना के बेटे आमोद खन्ना भी टूवर्ड्स एक्शन एंड लर्निंग (ताल) नाम से एक एनजीओ संचालित करते हैं। यह एनजीओ 2003 में शुरू हुआ था। यह एनजीओ पर्यावरण, महिला हिंसा के खिलाफ जागस्र्कता, स्कील डेवलपमेंट सहित कई अन्य प्रोजेक्ट पर काम करता है।
अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हैं अफसर
कई अफसरों और कुछ एनजीओ की मिलीभगत पर केंद्र की नजर है। राजधानी भोपाल में ही कुछ ऐसे एनजीओ हैं, जो चार-पांच मंजिला बिल्डिंग से संचालित होते हैं। सीधे तौर पर तो इससे कोई अधिकारी जुड़ा नहीं होता, लेकिन अधिकारी अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर ऐसे एनजीओ को जमकर फंडिंग दिलवाते हैं, दूसरी तरफ ऐसे एनजीओ में अधिकारियों के ही परिवार के लोग मोटी तनख्वाह पर काम करते हैं। गिव एंड टेक का यह फॉर्मूला राजधानी के कई एनजीओ में लागू होता है।
अधिकारियों को नहीं जुडऩा चाहिए
पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं- सरकार में बैठा कोई अधिकारी या रिटायर्ड अधिकारी को एनजीओ नहीं चलाना चाहिए। इसका सीधा सा कारण है कि इन लोगों का सरकार में प्रभाव रहता है, जिसका फायदा उठाकर एनजीओ के जरिए अनुदान लेते हैं। अधिकारियों के ही कई ऐसे एनजीओ हैं, जो गलत कामों में संलिप्त रहते हैं। खुफिया एजेंसियों के जरिए सरकार यदि पता लगा रही है तो यह स्वागत योग्य कदम है। इससे पता चल सकेगा कि वे एनजीओ सरकारी पैसे का दुस्र्पयोग तो नहीं कर रहे हैं।
हमें फर्क नहीं पड़ता
पूर्व मुख्यसचिव व महिला चेतना मंच की अध्यक्ष निर्मला बुच कहती हैं- सामाजिक कार्य कोई भी कर सकता है इसमें क्या बुराई है? एनजीओ का बाकायदा ऑडिट भी होता है। केंद्रीय एजेंसियां बहुत सी जानकारियां एकत्र करती हैं,किसी काम के लिए इसे भी कर रही होंगी,इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।

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