भाजपा का नितीश को समर्थन गुरुवार को शपथ लेंगे नितीश 

पटना, पटना राजद के नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर मतभेद के चलते बुधवार को अपने पद से इस्तीफा देने वाले नीतीश गुरूवार को भाजपा के समर्थन से शपथ लेंगे। नीतीश के इस्तीफे के बाद तेजी से बदले घटनाक्रम में बीजेपी ने नई सरकार बनाने के लिए जेडीयू को समर्थन देने का ऐलान किया है । बीजेपी नेता सुशील मोदी ने कहा कि नई सरकार में बीजेपी शामिल होगी और नीतीश को समर्थन देने के अपने फैसले के बारे में गवर्नर को पत्र भेजा गया है। अब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा कल पटना जाएंगे।
इससे पहले बिहार में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सुशील मोदी से बात की। सुशील मोदी ने अपने घर 1-पोलो रोड पर बीजेपी विधायकों की आपात बैठक बुलाई। इस बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने कहा था कि हम राज्य में मध्यावधि चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। हम चाहते हैं कि जो भी विधायक जीत कर आए हैं, वे पांच साल का कार्यकाल पूरा करें। बिहार भाजपा अध्यक्ष नित्यानंद राय, विधानसभा में नेता विपक्ष प्रेम कुमार और सुशील मोदी पार्टी विधायकों की एक समिति गठित की गई जिसने विधायकों की राय और पार्टी की राय से केंद्रीय नेतृत्व को अवगत कराया।
इससे पूर्व नीतीश कुमार ने राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को इस्तीफा सौंपने के बाद राजभवन के बाहर मीडिया से कहा कि ‘बिहार में जो माहौल था उसमें महागठबंधन की सरकार चलाना मुश्किल हो गया था।’ उन्होंने नई सरकार बनाने के लिए भाजपा का समर्थन लेने की बात से भी इंकार नहीं किया था।
वहीं, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए’ नीतीश की प्रशंसा करते हुए कहा था कि पूरा देश उनकी ईमानदारी का समर्थन करता है’। नीतीश कुमार के इस्तीफ़े के बाद भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने इसका स्वागत करते हुए कहा था कि उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल के सामने घुटने नहीं टेके है।

बिना शर्त समर्थन
बिहार भाजपा के विधायक दल ने नीतीश कुमार को बिना शर्त समर्थन देने का प्रस्ताव दिया है। इससे नया सियासी गणित बनने का अनुमान लगाया जा रहा है।
फिलहाल जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन वाली सरकार में आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस के कुल 178 विधायक हैं। कुल 243 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 122 विधायकों की जरूरत है। संभावना जेडीयू द्वारा भाजपा और उसके सहयोगी दलों के साथ नई सरकार के गठन की बन रही है।
किसके पास कितने विधायक
जेडीयू – 71
आरजेडी – 80
कांग्रेस- 27
बीजेपी व सहयोगी दल – 58
बहुमत के लिए जरूरी संख्या- 122
कुल विधायक- 243
जनता दल यूनाइटेड के कुल 71 विधायक हैं। बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के 58 विधायक हैं। इन दोनों को मिलाकर कुल संख्या 129 होती है जो कि बहुमत के लिए पर्याप्त है।

क्या नीतीश की पार्टी को तोड़ लेंगे लालू?
लालू यादव ने प्रेस वार्ता में कहा है कि तेजस्वी या नीतीश के आलावा किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनना चाहिए। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या लालू ने जदयू के कथित असंतुष्टों से कोइ सेटिंग कर रखी है।
नीतीश की पार्टी जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव हमेशा से बीजेपी विरोधी गठबंधन के हामी रहे हैं। लालू प्रसाद यादव की पार्टी जेडीयू के पास सबसे ज्यादा 80 विधायक हैं। ऐसे में इस बात की भी संभावना है कि जेडीयू के ही कुछ विधायक टूटकर लालू के साथ चले जाएं। इस तरह लालू की पार्टी जेडीयू के बागियों, कांग्रेस के 27, सीपीआई-एमएल के 4 और 4 निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाने का प्रयास कर सकती है।
सीटों के आंकड़े की बात करें तो 243 सदस्यीय विधानसभा में सबसे ज्यादा 80 सीटें लालू यादव की पार्टी आरजेडी के पास हैं। नीतीश की पार्टी जेडीयू के पास फिलहाल 71 सीटें हैं, जबकि महागठबंधन में तीसरी सहयोगी पार्टी रही कांग्रेस के पास 27 सीटें हैं। वहीं, मुख्य विपक्षी दल भाजपा के पास 53 सीटें हैं और उसकी सहयोगी पार्टी एलजेपी और आरएलएसपी के दो-दो विधायक हैं। जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ का एक विधायक है और भाकपा माले के खाते में तीन सीटें हैं, जबकि 4 निर्दलीय विधायक हैं। सीटों के इन आंकड़ों के आधार पर बिहार
बिहार में सत्ता हासिल करने का जादुई आंकड़ा 122 है। जेडीयू के पास 71 सीटें हैं और बीजेपी की 53 सीटें मिला ली जाएं तो 124 सीटें हो जाती हैं। इससे सरकार को बहुमत मिल जाएगा। वहीं, बीजेपी की सहयोगी एलजेपी, आरएलएसपी और ‘हम’ जैसी पार्टियों की सीटों को मिला लें तो यह आंकड़ा 129 सीटों का होता है। यानी बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश कुमार आसानी से सरकार चला सकते हैं।
नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर ‘सुशासन बाबू’ की अपनी छवि को मजबूत करते हुए बड़ा दांव खेला है। ऐसे में यह भी संभावना जताई जा रही है कि वह अपने दम पर चुनाव में जाने का फैसला लें और बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरें। यदि नीतीश इस राह पर चलते हैं तो राज्य में चुनाव होने तक राष्ट्रपति शासन भी लागू हो सकता है।

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