जबलपुर, मध्यप्रदेश सरकार द्वारा नर्मदा नदी से रेत के उत्खनन पर रोक लगाए जाने के बाद अभी भी चोरी छिपे रेत का उत्खनन जारी है। प्रशासनिक साठगांठ के चलते रेत उत्खनन का काम धड़ल्ले से चल रहा है और रेत का स्टाक भी हो रहा है, जो महंगी बिक रही है। जिनके काम पहले से चल रहे थे, अधिकांश के काम रूक गए हैं। निजी भवनों का निर्माण, जिनकी मजबूरी है वे मंहगे दामों पर रेत खरीदकर करा रहे हैं। लेकिन सरकारी काम लगभग ठप्प हो गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बन रहे गरीबों केमकान रेत के अभाव में रूक गए हैं। इकोफ्रेंडली ईंट का कारोबार भी इससे प्रभावित हो रहा है।
बताया गया है कि इकोफ्रेंडली ईंट का निर्माण सीमेंट फैक्ट्री के वेस्ट मटेरियल से होता है। लेकिन निर्माण कार्यों में आई शिथिलता के कारण सीमेंट उत्पादन भी कम हो रहा है, जिससे वेस्ट मटेरियल भी कम निकल रहा है। लिहाजा,इकोफ्रेंडली ईंट बनाने वालों को रॉ मटेरियल की कमी भी महसूस होने लगी है। अब मजबूरी में वे सुपर डस्ट खरीदकर ईंट बनाने का काम कर रहे हैं। जो सुपर डस्ट पहले 7 हजार रूपये ट्रक मिलती थी, अब उसका रेट रेत पर लगी रोक के बाद बढ़कर 11 हजार रूपए ट्रक हो गया है। रेत की कमी की वजह से रीयल इस्टेट कारोबार के साथ भवन निर्माण सामग्री का भी कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है। रेत नहीं मिलने से और रेत मंहगी हो जाने से काम ठप्प हैं। लिहाजा, ईंट, गिट्टी, सीमेंट, लोहा, टाईल्स, मार्बल कारोबार भी प्रभावित हुआ है। इन व्यवसायों पर जबर्दस्त मंदी का दौर आ गया है। सरकार ने बिना किसी व्यवस्था के रेत खनन पर रोक लगा दी है। नर्मदा संरक्षण के नाम पर लगाई गई रोक स्वागत योग्य है, लेकिन व्यवस्था किया जाना भी अति आवश्यक है। एक तरफ सरकार कह रही है कि हर आदमी के सिर पर छत हो, सरकार इस योजना पर काम कर रही है। लेकिन खुद प्रधानमंत्री आवास योजना पर रेत की कमी से ग्रहण लग गया है। सरकारी निर्माण कार्य प्रभावित होने से जनहित के विकास कार्य भी नहीं हो पा रहे हैं। इन दिनों रेत सिर्फ कटनी, महानदी और परियट व शहर के नालों से निकाली जा रही है। उसके भी दाम ऊंचे हैं। 40 हजार रूपया हाईवा और 30 हजार ट्रक के भाव से रेत बिक रही हैं। जिनके पास रेत का अवैध स्टाक है, वे ऊंचे दामों पर रेत की सप्लाई कर रहे हैं।