मुम्बई,महाराष्ट्र की सत्ता के नाटक का अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। शाम को शिवसेना का दावा लेकर जब आदित्य ठाकरे राज्यपाल कोशियारी के पास पहुंचे तो राज्यपाल ने उन्हें सरकार के गठन के लिए 48 घंटे का समय देने से इंकार कर दिया और कहा कि आप की समय सीमा खत्म हो चुकी है। इसके साथ ही राज्यपाल ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को बुलाकर पूछा कि क्या वह सरकार बना सकती है। राज्यपाल से मिलने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अजित पवार ने केवल इतना बताया कि उन्हें 24 घंटे का समय दिया गया है। इस प्रकार अब सत्ता के इस खेल में गेंद जहां राज्यपाल के पाले में है वहीं शिवसेना – राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति भी है।
दोपहर में उस समय सरकार बनने की आस जगी थी जब दिल्ली में सोनिया गांधी ने संकेत दिया था कि उनकी पार्टी राकांपा और शिवसेना की सरकार को बाहर से समर्थन दे सकती है। लेकिन शाम तक राकांपा और शिवसेना का यह वक्तव्य आया कि दोनों दलों ने अभी तक समर्थन का पत्र नहीं दिया है। इसके बाद जब आदित्य ठाकरे बिना किसी सूची राज्यपाल के पास पहुंचे तो राज्यपाल ने उनसे कहा कि समय सीमा समाप्त हो चुकी है और समय नहीं दिया जाएगा। हालाँकि ठाकरे ने राज्यपाल से यह भी कहा था कि कांग्रेस-राकांपा सैद्धांतिक रूप से समर्थन पर राजी हैं।
राज्यपाल द्वारा अब राकांपा को समय दिए जाने के बाद यह यक्ष प्रश्न है कि महाराष्ट्र में सरकार किसके नेतृत्व में गठित होगी। एक तरफ शिवसेना अपना मुख्यमंत्री बनाने पर अड़ी हुई है तो दूसरी तरफ राकांपा को राज्यपाल का आमंत्रण मिल गया है। राज्यपाल से मिलने के बाद अजित पवार के अलावा छगन भुजबल – जयंत पाटिल और अन्य सीनियर नेताओं ने प्रेस से कोई बातचीत नहीं की। सत्ता के गलियारों से छनकर बाहर जो समाचार आया उसका सार यह है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और राकांपा शिवसेना के साथ कुछ विशेष शर्तों पर सरकार का फैसला कर सकते हैं।
तीनों दलों के राजनीतिक सूत्र बताते हैं कि कल दोपहर तक बातचीत फाइनल होने के बाद राज्यपाल को विधायकों के समर्थन का पत्र दिया जा सकता है।
उधर कांग्रेस में भी खलबली है। राजस्थान में महाराष्ट्र से दूर कांग्रेस के विधायक सत्ता में आने के लिए बेताब हैं। उन्हें लगता है कि किसी तरह महाराष्ट्र की सरकार में बाहर या भीतर से कांग्रेस की भागीदारी होने से कांग्रेस को राज्य में फायदा होगा। सूत्रों का यह भी कहना है कि उद्धव ठाकरे से बातचीत में सोनिया गांधी ने उन्हें पार्टी में चर्चा के बाद समर्थन देने अथवा ना देने के विषय में अवगत कराने की बात कही थी। ठाकरे ने कई बार फोन लगाया उसके बाद ही सोनिया बातचीत के लिए राजी हुई। सोनिया गांधी की दुविधा यह है कि शिवसेना के साथ जाने से कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष छवि को धक्का पहुंच सकता है। उधर एक खतरा यह भी है कि सरकार बनाने में असफल रहने पर कांग्रेस संगठन में बगावत के सुर उभर सकते हैं और इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। बगावत की आशंका से कांग्रेस ही नहीं राकांपा और शिवसेना भी विचलित है। भारतीय जनता पार्टी तटस्थ रहकर सत्ता के इस नाटक को देख रही है। भारतीय जनता पार्टी की किसी भी बड़े नेता ने महाराष्ट्र के घटनाक्रम पर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की है। भाजपा के भीतर यह शांति आने वाले तूफान का संकेत हो सकती है।
यदि राज्यपाल को विधायकों के समर्थन का पत्र कल शाम को 7:30 बजे तक नहीं मिलेगा तो फिर महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ जाएंगे। राज्यपाल अधिक समय देने के पक्ष में नहीं हैं। अब देखना यह है कि तीनों राजनीतिक दल मिलकर सत्ता का गणित किस तरह सुलझाते हैं।
वहीं इस मामले के तकनीकी पहलू पर बात करें तो जानकारों का कहना है कि ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल हर दल के लिए 24 घंटों का समय आरक्षित रखते हैं। जिसके तहत बीजेपी को 24 घंटों का समय दिया जा चुका है, शिवसेना ने अपने 24 घंटे पूरे कर लिए हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस कोर कमेटी की बैठक पूरी हुई जहां मल्लिकार्जुन खड़गे ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि मुंबई में एनसीपी के साथ बात होगी और उसके बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा। यानि की कोर कमेटी की बैठक में सरकार बनाने पर कोई भी स्थिति साफ नहीं हो पाई।
ज्ञात रहे कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे बीजेपी को 105, शिवसेना को 56, एनसीपी को 54 और कांग्रेस को 44 सीटें मिली हैं। बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर बहुमत का 145 का आंकड़ा पार कर लिया था। लेकिन शिवसेना ने 50-50 फॉर्मूले की मांग रख दी जिसके मुताबिक ढाई-ढाई साल सरकार चलाने का मॉडल था। शिवसेना का कहना है कि बीजेपी के साथ समझौता इसी फॉर्मूले पर हुआ था लेकिन बीजेपी का दावा है कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ। इसी लेकर मतभेद इतना बढ़ा कि दोनों पार्टियों की 30 साल पुरानी दोस्ती टूट गई।