सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अयोध्या में राम मंदिर वहीं बनेगा, मस्जिद के लिए दूसरे स्थान पर दी जाएगी जमीन

नई दिल्ली, 70 साल तक चली कानूनी लड़ाई, 40 दिन तक लगातार मैराथन सुनवाई के बाद शनिवार को अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया। राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से 1045 पन्नों वाला ऐतिहासिक फैसला सुनाया। निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना। शीर्ष कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने आगे कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने का आदेश हुआ है। खचाखच भरे कोर्ट रूम नंबर 1 में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने करीब 45 मिनट में एक-एक कर पूरा फैसला पढ़ा।
विवादित जमीन रामलला की, सुन्नी पक्ष को कहीं और जमीन
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसले में कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढऩे के सबूत नहीं है। उधर हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाकर स्कीम बताए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आखिर में 2.77 एकड़ जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दे दिया। कोर्ट ने आगे कहा कि हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है।इससे पहले कोर्ट ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 तक नमाज पढ़ी गई थी। टाइटल सूट नंबर 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और 5 (रामलला विराजमान) में हमें संतुलन बनाना होगा। हाई कोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे, उसे दो हिस्सों में मानना होगा। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तार्किक नहीं था। इससे साफ हो गया कि मामले में अब रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड दो पक्ष ही रह गए।
1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा करते थे
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य पार्टी रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही माना। सुन्नी पक्ष ने विवादित जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की थी। कोर्ट ने फैसले में कहा कि 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढऩे के सबूत नहीं है। आपको बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वहां लगातार नमाज पढ़ी जाती रही थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा किया करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे।
खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी पारदर्शिता से हुआ है। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल रचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं। गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि एएसआई की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि नीचे संरचना मिलने से ही हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता।
राम के जन्मस्थान के दावे का विरोध नहीं
कोर्ट ने कहा कि एएसआई नहीं बता पाया कि मस्जिद तोड़कर मंदिर बनी थी। हालांकि अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिंदू पूजा किया करते थे। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू दावा गलत साबित नहीं हुआ। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम के जन्म का सही स्थान मनाते हैं। कोर्ट ने कहा कि रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी इस दावे की पुष्टि होती है। आपको बता दें कि ऐतिहासिक ग्रंथ में स्कंद पुराण का जिक्र किया गया था।
मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी। उन्होंने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। नमाज पढऩे की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते हैं। जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है।
निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले की शुरुआत में ही हिंदू पक्ष निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने इस पक्ष को एक तिहाई हिस्सा दिया था। रामलला को कोर्ट ने मुख्य पक्षकार माना। निर्मोही अखाड़ा सेवादार भी नहीं है। कोर्ट ने रामलला को कानूनी मान्यता दी।
मंदिर के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाएगा केंद्र
कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का गठन कर विवादित स्थान को मंदिर निर्माण के लिए देने को कहा है। कोर्ट ने साथ में यह भी आदेश दिया कि केंद्र सरकार सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन देने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया लेकिन केंद्र को आदेश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज में उसे उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए। मंदिर निर्माण कैसे होगा, यह बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज तय करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम अपने साक्ष्यो से यह सिद्ध नहीं कर पाए की विवादित भूमि पर उनका ही एकाधिकार था।
अब हैं दो विकल्प
सुप्रीम कोर्ट का फैसला यूं तो अंतिम कहा जा सकता है, लेकिन इसके बाद भी कानूनी विकल्प बचे होंगे। असंतुष्ट पक्ष फैसले के 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका यानी रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकेगा। यही नहीं यदि इस पर आए फैसले पर भी किसी पक्ष को असहमति होती है तो फिर शीर्ष अदालत में क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की जा सकती है। क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल करने के लिए भी 30 दिन का ही वक्त मिलता है। फैसले पर पुनर्विचार की याचिका दाखिल करने वाली पार्टी को शीर्ष अदालत में यह साबित करना होता है कि उसके फैसले में क्या त्रुटि है। बता दें कि रिव्यू पिटिशन के दौरान वकीलों की ओर से जिरह नहीं की जाती। पहले दिए गए फैसले की फाइलों और रिकॉर्ड्स पर ही विचार किया जाता है।
फैसले के चार आधार, जिनसे मिली जमीन
चीफ जस्टिस ने अपने फैसले में कहा कि मुस्लिम पक्ष यह साबित नहीं कर सकता कि विवादित स्थल पर 1528 से 1856 तक नमाज पढ़ी जाती थी।
1934 में यहां सांप्रदायिक दंगा हुआ था, जिसके बाद अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुस्लिमों को दूर रखने के लिए विवादित स्थल को रैलिंग से अलग-अलग कर दिया। इसके बाद हिंदू अंदर पूजा करने के बजाए बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। इसी आधार पर मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद होने का दावा किया था।
विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर था, यह साबित होने में एएसआई की रिपोर्ट बहुत अहम रही। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि विवादित स्थल पर पहले मंदिर था। मंदिर के अवशेषों के ऊपर ही मस्जिद बनाई गई थी।
इसके साथ ही ट्रेवलर्स के कमेंट को भी अहम माना गया। इन ट्रेवलर्स ने लिखा था कि विवादित स्थल पर मंदिर था।
किसे क्या मिला
रामजन्मभूमि न्यास
सुप्रीम कोर्ट ने रामलला की जमीन रामजन्मभूमि न्यास को दे दी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है कि तीन महीने में राम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट बनाया जाए। बोर्ड ऑफ ट्रस्टी बनाए। विवादित स्थल का आउटर कोर्टयार्ड हिंदुओं को मंदिर बनाने के लिए दिया जाए। इस ट्रस्ट को केंद्र सरकार ही संभालेगी।
सुन्नी वक्फ बोर्ड
अयोध्या में केंद्र या राज्य सरकार 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे। यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड को विवादित जमीन से अलग अयोध्या शहर में किसी और जगह जमीन मिलेगी। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष विवादित जमीन पर दावा साबित करने में नाकाम रहा है।
निर्मोही अखाड़ा
सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अखाड़े का दावा लिमिटेशन से बाहर है।
शिया वक्फ बोर्ड
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिया वक्फ बोर्ड का दावा नहीं बनता। इसे खारिज किया जाता है।
क्या थी शिया बोर्ड की याचिका
अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले शिया वक्फ बोर्ड की याचिका को खारिज किया। बोर्ड का तर्क था कि मीर बाकी शिया था और किसी भी शिया की बनाई गई मस्जिद को किसी सुन्नी को नहीं दिया जा सकता है इसलिए इस पर हमारा अधिकार बनता है और इसे हमें दे दिया जाए। शिया वक्फ बोर्ड चाहता था कि वहां इमाम-ए-हिंद यानी भगवान राम का भव्य मंदिर बने, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की जा सके।
क्या था निर्मोही अखाड़े का दावा
सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े का दावा खारिज कर दिया। निर्मोही अखाड़े ने सुप्रीम कोर्ट अक्टूबर में दस्तावेज सौंपे थे। निर्मोही अखाड़े की लिखित दलील में कहा था कि विवादित भूमि का आंतरिक और बाहरी अहाता भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में मान्य है। हम रामलला के सेवायत हैं। ये हमारे अधिकार में सदियों से रहा है। निर्मोही अखाड़े ने अपनी दलील में कहा था कि हमें ही रामलला के मंदिर के पुनर्निर्माण, रखरखाव और सेवा का अधिकार मिलना चाहिए।
इन जजों ने सुनाया फैसला
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर।
ऐतिहासिक फैसला पर किसने क्या कहा
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या पर अपना फैसला सुना दिया है। इस फैसले को किसी की हार या जीत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। रामभक्ति हो या रहीम भक्ति, ये समय हम सभी के लिए भारत भक्ति की भावना को सशक्त करने का है। देशवासियों से मेरी अपील है कि शांति, सद्भाव और एकता बनाए रखें। – नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
श्रीराम जन्मभूमि पर सर्वसम्मति से आए सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का मैं स्वागत करता हूं। मैं सभी समुदायों और धर्म के लोगों से अपील करता हूं कि हम इस निर्णय को सहजता से स्वीकारते हुए शांति और सौहार्द से परिपूर्ण ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ के अपने संकल्प के प्रति कटिबद्ध रहें।- अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री
यह मसला बहुत अहम था, जो अब खत्म हो गया। मैं खुश हूं कि आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार फैसला दे दिया। मैं कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हूं।- इकबाल अंसारी, मुस्लिम पक्षकार
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामाजिक ताने बाने को और मजबूत करेगा। मैं लोगों से शांति और सौहार्द बनाए रखने की अपील करता हूं।- राजनाथ सिंह, केंद्रीय रक्षा मंत्री
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच के पांचों जजों ने एकमत से आज अपना निर्णय दिया। हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हैं। कई दशकों के विवाद पर आज सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया। वर्षों पुराना विवाद आज खत्म हुआ। मेरी सभी लोगों से अपील है कि शांति एवं सौहार्द बनाए रखें- अरविंद केजरीवाल, दिल्ली सीएम
सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है वह सर्वमान्य है, हम सबका न्याय व्यवस्था में विश्वास है, लंबे समय से चल रहे विवाद का निपटारा हुआ है, यह अच्छी बात है।- पूर्व केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा
अयोध्या में शांति-व्यवस्था कायम रहनी चाहिए। हम इसका खास ख्याल रखेंगे क्योंकि हम देश के नागरिक हैं यह हमारी जिम्मेदारी है। सत्य की जीत हुई है। हम फैसले का स्वागत करते हैं। – शरद शर्मा, वीएचपी
अयोध्या मामले का फैसला विरोधाभासी है। हम फैसले से संतुष्ट नहीं है हालांकि हम फैसले को पूरा सम्मान देते हैं। आगे की कार्रवाई पर फैसला लेंगे। मैं देश के लोगों से अपील करता हूं कि किसी तरह का विवाद न उत्पन्न करें।- जफरयाब जिलानी, मुस्लिम पक्ष के वकील
सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करें और शांति व्यवस्था बनाए रखें।- केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सभी को स्वागत करना चाहिए, यह सामाजिक सौहार्द के हित में है। इस मुद्दे पर आगे कोई विवाद नहीं होना चाहिए, यह मेरी लोगों से अपील है।- नीतीश कुमार, बिहार मुख्यमंत्री
अयोध्या में विवादित जमीन पर मालिकाना हक का अपना दावा खारिज होने का कोई अफसोस नहीं है।
महंत धर्मदास
निर्मोही अखाड़े के वरिष्ठ पंच
माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस दिव्य फ़ैसले का स्वागत। माननीय अशोक सिंघल जी को स्मरण करते हुए उनको शत्-शत् नमन। वह सब, जिन्होंने इस कार्य के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी उन्हें श्रद्धांजलि। आडवाणी जी का अभिनंदन जिनके नेतृत्व में हम सब लोगों ने इस महान कार्य के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगा दिया था।
उमा भारती
भाजपा की दिग्गज नेत्री

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