देव उठनी ग्यारस कल, ये काम करें और जानें इसका महत्व एवं पूजा की विधि

नई दिल्ली,कार्तिक मास शुक्ल पक्ष एकादशी हिंदू धर्म के लिए काफी खास मानी जाती है। इसे देवउठनी और देव प्रबोधिनी के नाम से जाना जाता है। इस बार शुक्रवार 8 नवंबर को यह एकादशी पड़ रही है। सनातन धर्म के अनुसार भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुरू होने से 4 महीने पूर्व ही सो जाते हैं। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य हिंदू धर्म में नही किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु अपनी निद्रा को त्यागते हैं। इस प्रकार देव उठने के साथ ही चार महीने से रुके हुए मांगलिक कार्य भी इसी दिन से शुरू हो जाते हैं। विष्णु पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु ने शंखासुर नामक राक्षस का वध करने के बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को क्षीर सागर में श्री हरि ने शेषनाग की शय्या पर शयन किया था। 4 महीने बाद भगवान ने अपनी निद्रा तोड़ी थी तब से इसे हिंदू धर्म में खास महत्व दिया जाता है। इस एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और देव उठनी ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है। वहीं भगवान की शयन को निद्रा अल्पनिद्रा और योगनिद्रा कहा जाता है।
इस दिन करें ये कार्य
इस दिन तुलसी के पौधे के निकट गाय के घी में दीपक जलाने साथ ही ओम् वासुदेवाय नमः मंत्र के जाप करते हुए 11 बार परिक्रमा करने से पूरे साल लक्ष्मी और विष्णु की कृपा बनी रहती है। इससे कभी भी आर्थिक संकट नहीं आता है।
धन की इच्छा रखने वाले लोग इस दिन किसी भी विष्णु मंदिर में जाकर सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दौरन खीर और मिठाई में तुलसी का पत्ता रखना ना भूलें।
नारियल और बादाम भी मंदिर में चढ़ाने से भगवान विष्णु खुश होते हैं।
इस दिन पीले रंग का वस्त्र, पीले रंग के फूल, पीले रंग के फल या अनाज का दान करने या गरीबों में बांटने से भी भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है।
इस दिन तीर्थ स्थान पर जाकर स्नान करें और गायत्री मंत्र का जाप करें। इससे सौभाग्य प्राप्त होता है।
इस दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है,दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल का होना अनिवार्य है,भगवान की माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है।
इस मंत्र का करें मंत्रोच्चारणः
हिंदू धर्म में मंत्रों का काफी महत्व माना जाता है। करीब सारे विधि विधान मंत्रों के द्वारा ही संपन्न होते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन मंत्रोच्चारण, स्त्रोत पाठ, शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का भी विधान है।
देव उठनी पर पूजा विधि
इस दिन सांयकाल में पूजा स्थल को साफ़-सुथरा कर लें,चूना व गेरू से श्री हरि के जागरण के स्वागत में रंगोली बनाएं। घी के ग्यारह दीपक देवताओं के निमित्त जलाएं।द्राक्ष,ईख,अनार,केला,सिंघाड़ा,लड्डू,पतासे,मूली आदि ऋतुफल एवं नवीन धान्य इत्यादि पूजा सामग्री के साथ रखें। यह सब श्रद्धापूर्वक श्री हरि को अर्पण करने से उनकी कृपा सदैव बनी रहती है।
मंत्रोच्चारण
इस दिन मंत्रोच्चारण,स्त्रोत पाठ,शंख घंटा ध्वनि एवं भजन-कीर्तन द्वारा देवों को जगाने का विधान है।भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
मंत्र ज्ञात नहीं होने पर या शुद्ध उच्चारण नहीं होने पर ‘उठो देवा,बैठो देवा’ कहकर श्री नारायण को उठाएं।
तुलसी-शालिग्राम विवाह से मिलता है पुण्य
कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियां एकादशी को भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम एवं विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न करवाती हैं।पूर्ण रीति-रिवाज़ से तुलसी वृक्ष से शालिग्राम के फेरे एक सुन्दर मंडप के नीचे किए जाते हैं। विवाह में कई गीत,भजन व तुलसी नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ किए जाने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है,दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। कार्तिक मास में तुलसी रुपी दान से बढ़कर कोई दान नहीं हैं। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल का होना अनिवार्य है,भगवान की माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है।
देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त
7 नवंबर 2019 प्रात: 09:55 से 8 नवंबर 2019 को रात 12:24 तक ।

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