बेंगलुरु, चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग से ऐन पहले चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का ग्राउंड स्टेशन से संपर्क टूट गया। उस वक्त लैंडर चांद की सतह से महज 2.1 किलोमीटर दूर था। विक्रम के साथ वास्तव में हुआ क्या, वह कहां और कैसे है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई है। हालांकि ऑर्बिटर पर लगे अत्याधुनिक उपकरणों से जल्द ही इन सभी सवालों के जवाब मिल सकते हैं। इसरो के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया है कि अगले 3 दिनों में विक्रम कहां और कैसे है, इसका पता चल सकता है।
3 दिन बाद उसी पॉइंट से गुजरेगा ऑर्बिटर
3 दिनों में लैंडर विक्रम के मिलने की संभावना है। इसकी वजह यह है कि लैंडर से जिस जगह पर संपर्क टूटा था, उसी जगह पर ऑर्बिटर को पहुंचने में 3 दिन लगेंगे। हमें लैंडिंग साइट की जानकारी है। आखिरी क्षणों में विक्रम अपने रास्ते से भटक गया था, इसलिए हमें ऑर्बिटर के 3 उपकरणों सिंथेटिक अपर्चर रडार, स्पेक्ट्रोमीटर और कैमरे की मदद से 1010 किलोमीटर के इलाके को छानना होगा। विक्रम का पता लगाने के लिए हमें उस इलाके की हाई रेजॉलूशन तस्वीरें लेनी होंगी।
टुकड़े-टुकड़े हो गया होगा तो विक्रम तो ढूंढना मुश्किल
वैज्ञानिक ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर विक्रम ने क्रैश लैंडिंग की होगी और वह खंड-खंड हो चुका होगा तब उसके मिलने की संभावना कम होगी। हालांकि, अगर उसके कंपोनेंट को नुकसान नहीं पहुंचा होगा तो हाई-रेजॉलूशन तस्वीरों के जरिए उसका पता लगाया जा सकेगा। इसरो चीफ के. सिवन ने भी कहा है कि अगले 14 दिनों तक लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की लगातार कोशिश होती रहेगी। इसरो की टीम लगातार मिशन के काम में जुटी हुई है। ऐसे में देश को उम्मीद है कि अगले 14 दिनों में कोई अच्छी खबर मिल सकती है।
3-इन-1 मिशन है चंद्रयान-2
चंद्रयान-2 एक प्रकार से 3-इन-1 मिशन था। इसमें ऑर्बिटर के साथ लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान भी भेजे गए थे। एक ही मिशन से इसरो का प्रयास चंद्रमा की सतह, सतह से नीचे और बर्हिमंडल, तीनों पर शोध करना था। ऑर्बिटर 20 अगस्त 2019 को ही चंद्रमा की कक्षा में सफलता से दाखिल होकर करीब 120 किमी ऊंचाई पर परिक्रमा कर रहा है और बर्हिमंडल व सतह की तस्वीरें भी भेज चुका है। इसरो के अनुसार ऑर्बिटर में 0.3 मीटर रिजोल्यूशन का अत्याधुनिक कैमरा लगा है, जो अब तक किसी भी चंद्र मिशन में नहीं लगाया गया। विशेषज्ञों के अनुसार इसके जरिये चंद्रमा की सतह पर मौजूद एक फीट जितनी बड़ी वस्तु की भी तस्वीर ली जा सकती है। इसरो ने चंद्रयान-2 को बेहद जटिल मिशन बताया और कहा कि यह इसरो के अब तक के सभी मिशन में तकनीकी तौर पर बहुत आगे है। यही वजह है कि 22 जुलाई के प्रक्षेपण के बाद से पूरी दुनिया इसकी प्रगति देख रही है और काफी अपेक्षाएं रखती है।
मिशन से क्या होगा फायदा
ऑर्बिटर अब अगले कुछ समय में चंद्रमा के विकास पर हमारी समझ को बढ़ाएगा। इसके नक्शे तैयार करेगा, खनिजों का आकलन करेगा और चंद्रमा के ध्रुवों पर पानी की संभावना तलाशेगा। इसके लिए इसमें आठ वैज्ञानिक उपकरण लगाए गए हैं।
इसरो ने शुरू की पड़ताल
इसरो के वैज्ञानिक अब इस बात बात की जांच कर रहे हैं कि विक्रम लैंडर की लैंडिंग में गड़बड़ी कहां हुई, कैसे हुई और क्यों हुई? इसके लिए इसरो के वैज्ञानिकों ने लंबा-चौड़ा डाटा खंगालना शुरू कर दिया है। इसरो के वैज्ञानिक इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए विक्रम लैंडर के टेलिमेट्रिक डाटा, सिग्नल, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर, लिक्विड इंजन का विस्तारपूर्वक अध्ययन कर रहे हैं।
अंतिम 20 मिनट का डाटा
विक्रम की लैंडिंग आखिरी पलों में गड़बड़ हुई। ये दिक्कत तब शुरू हुई जब विक्रम लैंडर चांद की सतह से मात्र 2.1 किलोमीटर ऊपर था। अब वैज्ञानिक विक्रम लैंडर के उतरने के रास्ते का विश्लेषण कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक हर सब-सिस्टम के परफॉर्मेंस डाटा में कुछ राज छिपा हो सकता है। यहां लिक्विड इंजन का जिक्र बेहद अहम है। विक्रम लैंडर की लैंडिंग में इसका अहम रोल रहा है।
लैंडिग एरिया की मैपिंग
ऑर्बिटर में ऐसे उपकरण है कि जिनके पास चांद के सतह को मापने, तस्वीरें खींचने की क्षमता है। अगर ऑर्बिटर ऐसी कोई भी तस्वीर भेजता है तो लैंडर के बारे में जानकारी मिल सकती है।
आंतरिक चूक या बाहरी तत्व
इसरो विक्रम लैंडर की लैंडिंग में आई खामी का पता करने के लिए हर पहलू की जांच कर रहा है। इसरो की टीम अब ये जांच कर रही है कि क्या किसी किस्म की आंतरिक चूक हुई है या फिर कोई बाहरी तत्व का हाथ है।