महाराष्ट्र में बाबा रामदेव को सोयाबीन प्लॉट के लिए आधी कीमत पर जमीन का प्रस्ताव

मुंबई, महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार की योग गुरु बाबा पर नजरे इनायत है। नागपुर में पतंजलि फूड और हर्बल पार्क के लिए सरकार ने तकरीबन तीन साल पहले मामूली कीमत पर 230 एकड़ जमीन मुहैया कराई थी। अब फडणवीस सरकार एक बार फिर योगगुरु रामदेव पर मेहरबान नजर आ रही है। राज्य सरकार ने रामदेव की कंपनी के लिए रेड कार्पेट बिछाने की तैयारी कर ली है। मुख्यमंत्री फडणवीस ने योगगुरु को लातूर में सोयाबीन प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने के लिए मौजूदा बाजार रेट से आधी कीमत (50 प्रतिशत छूट) पर 400 एकड़ जमीन मुहैया कराने का प्रस्ताव दिया है। इसमें कई अन्य छूट भी शामिल हैं। खास बात यह है कि सीएम फडणवीस ने खुद योगगुरु को खत लिखकर ऑफर दिया है। हालांकि नागपुर में जमीन दिए जाने के तीन साल बाद भी अब तक फूड पार्क मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। लातूर के औसा तालुके में स्थित जो जमीन रामदेव को ऑफर की गई है, वह भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (भेल) फैक्ट्री के लिए 2013 में किसानों से अधिग्रहीत की गई थी। फैक्ट्री शुरू होने के बाद किसानों से नौकरी का वादा किया गया था। हालांकि बाबा रामदेव की कंपनी को जमीन देने की सूरत में किसान इस वादे को लेकर आश्वस्त नहीं हैं।
जमीन पर 50 प्रतिशत की छूट के साथ ही फडणवीस सरकार ने स्टैंप ड्यूटी हटाने, रामदेव द्वारा अदा की जाने वाली जीएसटी लौटाने के अलावा एक रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली बिल का भुगतान जैसी सहूलियतों का प्रस्ताव रखा है। इस ऑफर को योगगुरु रामदेव को खुश करने की फडणवीस सरकार की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। नांदेड़ में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम में रामदेव और फडणवीस के मंच शेयर करने के एक हफ्ते से कम वक्त के बाद यह ऑफर दिया गया है। 2013 में अपनी जमीन देने वाले किसानों का कहना है कि उनके साथ धोखा हुआ है। किसानों के मुताबिक उन्हें साढ़े तीन लाख रुपये प्रति एकड़ की दर से भुगतान किया गया, जबकि वर्तमान समय में जमीन की कीमत 45 लाख रुपये प्रति एकड़ है। किसान श्रीमंत लांडगे का कहना है, ‘जमीन के पास से एक हाईवे निकल रहा है, जिससे कीमत में उछाल आया है। हमने मूंगफली के लिए अपनी जमीन बेची थी, हमें कोई नौकरी नहीं मिली और अब हमसे कहा जा रहा है कि भेल के बजाए बाबा रामदेव यहां एक फैक्ट्री लगाएंगे।’ श्रीमंत ने कहा, ‘एक नेशनल प्रॉजेक्ट के लिए किसानों ने अपनी जमीन छोड़ी थी। अगर हमारी जमीन का इस्तेमाल प्राइवेट प्रॉजेक्ट के लिए होने जा रहा है तो हमें बाजार दर के आधार पर मुआवजा मिलना चाहिए।’

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