गुजरात के हरेन पंड्या हत्याकांड में HC का फैसला बदलकर SC ने 7 आरोपियों को सुनाई उम्रकैद की सजा

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने आज हरेन पंड्या हत्याकेस में गुजरात हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए सात आरोपियों को दोषी करार दिया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई है. अगस्त 2011 में गुजरात हाईकोर्ट ने विशेष पोटा कोर्ट के फैसले को पलटते हुए सभी 12 आरोपियों की बरी कर दिया था.
गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पंड्या हत्याकांड में शुक्रवार को सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी सफलता मिली. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सात आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. मार्च 2003 के हरेन पंड्या हत्याकेस में गुजरात हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया था. गुजरात हाईकोर्ट ने सुनवाई में कहा था कि सीबीआई की जांच की स्पष्ट दिशा नहीं है. हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि जांच के दौरान कुछ तथ्यों की अनदेखी की गई है और बहुत कुछ छूट गया है. हाईकोर्ट में मामला जाने से पहले सत्र न्यायालय ने आरोपियों को हत्या करने और आपराधिक षडयंत्र रचने का दोषी माना था. आतंकवाद निरोधक कानून के तहत विशेष पोटा कोर्ट ने सभी आरोपियों को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी. आरोपियों ने विशेष कोर्ट के फैसले को गुजरात हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. 29 अगस्त 2011 को गुजरात हाईकोर्ट ने विशेष अदालत का फैसला पलट दिया और सभी आरोपियों को बरी कर दिया. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाया. गौरतलब है कि 26 मार्च 2003 को अहमदाबाद के लॉ गार्डन क्षेत्र में तत्कालीन गृह मंत्री हरेन पंड्या की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. यह घटना उस समय हुई जब हरेन पंड्या मॉर्निंग वॉक पर थे. इस मामले में 12 लोगों को आरोपी बनाया गया था.
ज्ञात हो कि निचली अदालत ने इस केस में 12 को दोषी ठहराया था, जबकि हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया था। 2003 के इस हत्याकांड में दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनायी गई थी। गुजरात हाईकोर्ट ने वर्ष 2003 के हरेन पांड्या हत्याकांड के सभी 12 आरोपियों के खिलाफ लगे हत्या के आरोपों को हटा दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि सीबीआई की ओर से की गई जांच अस्पष्ट है, कुछ तथ्यों की अनदेखी की गई है। इसमें बहुत कुछ छूट गया है। इस हत्याकांड में सेशन कोर्ट ने आरोपियों को हत्या और आपराधिक साजिश रचने का दोषी करार दिया था। सीबीआई ने 2012 में हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में एनजीओ सेन्टर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशंस (सीपीआईएल) की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि इस मामले में निचली अदालत में फैसले के बाद चार नए तथ्य सामने आए हैं और ऐसी स्थिति में नए सिरे से जांच के आदेश की आवश्यकता है।

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