नई दिल्ली, यात्री ट्रेनों की रफ्तार में भारतीय रेल का सिग्नल सिस्टम और इंजनों का फेल होना बड़ी बाधा है। आंकड़ों के अनुसार, हर साल 1 लाख 18 हजार से अधिक बार सिग्नल फेल होते हैं, जबकि साढ़े 23 हजार से अधिक बार इंजनों के फेल होने से ट्रेनें बीच रास्ते में खड़ी होती हैं। रेलवे के बुनियादी ढांचे में कार्य के चलते 37 फीसदी ट्रेनों का समयपालन प्रभावित हो रहा है। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव द्वारा 7 मार्च को समीक्षा गोष्ठी में इन आंकड़ों का खुलासा हुआ है। 2018 अप्रैल से फरवरी 2019 में विभिन्न रेलवे मार्गों पर 325 बार सिग्नल फेल हुए हैं। यानी एक साल से कम समय में 1,18,625 बार सिग्नल फेल हुए। जानकारों की माने तो कि 130 की रफ्तार दौड़ती ट्रेन के ड्राइवर को सिग्नल फेल होने पर रफ्तार कम करनी पड़ती है। यदि सिग्नल हरा नहीं होता है तो ट्रेन खड़ी कर दी जाती है। सिग्नल हरा होने पर ड्राइवर ट्रेन को आगे बढ़ाता है। रेलवे की भाषा में इसे असेट फेलियर कहा जाता है। ट्रेन की रफ्तार पर ब्रेक लगाने व समयपालन गिरने का यह सबसे बड़ा कारण माना जाता है। उपरोक्त समय के दौरान प्रतिदिन चलती ट्रेन के 65 इंजन बीच रास्ते में बंद हो गए। कई बार इंजन पास के स्टेशन से लाकर बदले जाते है। इसके अलाव पटरियों में खराबी, ट्रेन के पहिये गर्म होने व अन्य इंजीनियरिंग व मकैनिकल त्रुटि के कारण भी ट्रेनों की रफ्तार पर ब्रेक लग जाता है। दस्तावेजों में उल्लेख है कि अप्रैल 2018 से फरवरी 2019 के बीच मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों का समयपालन 71.97 फीसदी से गिरकर 68.49 फीसदी (3.48 गिरावट) रहा। यानी 100 ट्रेनों में से 68 ट्रेनें समय पर अपने गंतव्य पहुंची। लेट लतीफी में राजधानी, शताब्दी, दुरंतो आदि प्रीमियम ट्रेनें भी शामिल हैं। रेलवे का तर्क है कि रेल संरक्षा कार्य बड़े पैमाने पर होने केकारण 37 फीसदी ट्रेनों का समयपालन प्रभावित रहेगा, जबकि रेलवे मार्गों पर कंजेशन के चलते 28 प्रतिशत ट्रेनों का समयपालन गिर जाता है।