अशोक नगर को जिला बने बारह साल हुए पर अब भी विकास की बाट जोह रहा,न सड़क,न स्कूल और नाहीं अस्पताल

अशोकनगर,मध्यप्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के 12 साल पूरे होने का जश्न कर रही भाजपा का विकास का दावा अशोकनगर जिले में दिखाई नहीं दे रहा है। सडक़ों से उड़ती धूल और स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये तरसते लोगों के अलावा क्षेत्र में शिक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं। अशोकनगर को जिला बने 13 साल हो चुकी हैं यहां के विधायक भी भाजपा के हैं। इसके अलावा नगरपालिका और जिला पंचायत पर भी भाजपा की है। लेकिन जिले के लोग सडक़ और स्वास्थ्य की सुविधाओं से बंचित हैं। आखिर विकास हो पा रहा है या नहीं इसे लेकर पक्ष और विपक्ष पूरी तरह अपने-अपने तर्क देने में लगे रहते हैं। परन्तु शहर में सडक़ोंं की ही हालत बद से बद्तर है। जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों और मशीनों की कमी से मरीजों को सही से उपचार नहीं मिल पाता है। इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी जिले में पर्याप्त व्यवस्थायें नहीं हैं। अधिकतर विद्यालय प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे चल रहे हैं। जब जिला मुख्यालय ही विकास से कोशों दूर है, तो फिर जिले में विकास के सभी मायने खतम हो जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बने उपस्वास्थ्य केन्द्रों में भी डॉक्टर न होने के कारण लोगों को स्वास्थ्य सेवायें नहीं मिल पाती हैं। मुख्यालय से जुडे कई ग्रामों में ग्रामीणों को आने-जाने के लिए प्रमुख मार्ग खराब पड़े हैं। जिससे उन्हें बारिश के समय में दिक्कत आती है। इसके अलावा पलकाटोरी, ढेकन सहित कई गांव वर्षों से अंधेरे में डूबे हुये हैं। इससे लगता है कि स्वयं जनप्रतिनिधि भी विकास को लेकर रुचि नहीं ले रहे हैं। सडक़ों की दुदर्शा की जानकारी क्षेत्रीय विधायक एवं नपा अध्यक्ष को होते हुये भी इसे नजर अंदाज किया जा रहा है। ट्रामा सेंटर भी अभी तक शुरु नहीं हो सका है। जबकि इसका लोकापर्ण हुये 3 माह से अधिक का समय बीत चुका है। लेकिन क्षेत्रीय नेता सुविधा उपलब्ध कराने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। जिसके कारण अभी तक भवन में ताले लटके हुये हैं।
विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी:
जिला अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की लम्बे समय से कमी है। इसके अलावा पर्याप्त सुविधायें भी नहीं हैं। अस्पताल में न तो हड्डीरोग विशेषज्ञ डॉक्टर है और न ही नेत्र रोग विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ और महिला विशेषज्ञ की भी जिला अस्पताल को दरकार है। हड्डीयों के विशेषज्ञ डॉक्टर के न होने की वजह से दुर्घटना में घायल मरीजों को सही से उपचार नहीं मिल पाता है। वहीं महिला विशेषज्ञ डॉक्टर के न होने की वजह से महिलाओं का इलाज कराने के लिये मोटी फीस चुकानी पढ़ती हैं। इसके अलावा शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर न होने छोटे बच्चों को भी सही से उपचार नहीं मिल पाता है। अस्पताल में पर्याप्त मशीनों की भी व्यवस्था नहीं है। जिससे जांच कराने में भी परेशानी आती है।
सडकों में गहरे गड्ढे, 24 घण्टे उड़ती है धूल:
शहर की मुख्य सडक़ों वायपास और विदिशा रोड़ की हालत लम्बे समय से खराब है। इन दोनों मुख्य रास्तों पर 24 घण्टे धूल उड़ती रहती है। रोड़ों की हालत इतनी खराब है कि लोग इन सडक़ों में निकलने तक में हिचकिचाते हैं। गहरे गड्डों और हर पल उड़ती धूल से राहगीरों को रोजाना जूझना पड़ता है। उड़ती धूल के कारण इनके आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है। उड़ती धूल आंखों और गले में भर जाती है, जिससे इन्फेंक्सन जैसी समस्याओं से लोग परेशानी हो रहे हैं। इन रास्तों पर रात के समय तो ऐसा लगता है जैसे धुंध छा रही है। नपा द्वारा करीब एक माह पहले विदिशा रोड़ का भूमिपूजन भी करवा दिया है। लेकिन अभी तक सडक़ का निर्माण शुरु नहीं हुआ है। नये बस स्टेण्ड के पास वायपास रोड़ पर भी गड्ढों में लाल मिट्टी डालने से लोगों को परेशानी हो रही है।
अधिकतर समय बंद रहती हैं आगनवाडिय़ां:
वार्ड नम्बर 6 और 7 में आंगनवाडिय़ां अधिकतर बंद रहती हैं। जिससे बच्चों को टीका लगवाना और लाड़ली लक्षमी में नाम लिखवाने के लिए भटकना पड़ता है। वार्ड नम्बर 7 के निवासी रंजीत पंथ ने बताया कि मेरी बच्ची एक माह की थी जब मेने लाड़ली के लिये आंगनवाड़ी में नाम लिखवाया था आज वह दो साल की हो चुकी है लेकिन अभी तक आंनवाड़ी के चक्कर काट रहा हूं। इस योजना से जोडऩे के लिये जो भी प्रमाणपत्र कागज मिलते हैं मुझे कुछ भी नहीं दिया गया है। दो साल दो महीने की पुत्री गुंजना पंथ को लाड़ली का लाभ नहीं मिल रहा। कईयों बार आंगनवाड़ी में जानकारी लेने के लिये गया तो वहां पर कोई उपस्थित ही नहीं मिलता है। कभी कबार मिले हैं तो कह देते हैं अभी नाम नहीं आया है आयेगा तब बता देगें।
खेत सडक़ योजना का नहीं मिल रहा लाभ:
प्रदेश सरकार द्वारा किसान को उसके खेत तक रास्ता बनाने के लिये खेत सडक़ योजना चलाई गई थी। वह योजना भी साकार रूप नहीं ले सकी है। कई गांवों में किसानों को अपने खेतों तक पहुंचने के लिये सडक़ नहीं डल सकी हैं, जिससे उनको को खेतों तक पहुंचने में परेशानी आ रही है। कईयों बार तो खेतों में जाने वाले रास्तों को लेकर विवाद की स्थिति भी निर्मित हो जाती है।

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