नई दिल्ली,सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान से मिली अपनी विशेष शक्ति का प्रयोग करते हुए पश्चिम बंगाल के दो जिला न्यायाधीशों का तलाक मंजूर किया जो १७ साल से एक दूसरे से अलग रह रहे थे। शीर्ष अदालत ने कहा कि उनका रिश्ता ऐसी स्थिति में पहुंच गया है जहां से उसे फिर से पटरी पर नहीं लाया जा सकता। न्यायमूर्ति एस ए बोब्दे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के २०१२ के तलाक की अर्जी खारिज करने के आदेश के खिलाफ पति की अपील को स्वीकार किया। पीठ ने इस बात पर विचार किया कि उसकी पत्नी की उसके साथ रहने में रुचि नहीं है क्योंकि वह कार्यवाही के दौरान किसी अदालत के सामने पेश नहीं हुई। पीठ ने कहा कि तलाक की कार्यवाही में भाग लेने से इंकार और अपीलकर्ता (पति) को पूरी तरह निष्क्रिय हो चुके वैवाहिक रिश्ते में रहने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने पति की तलाक की अर्जी खारिज की थी और कहा था कि पति पत्नी द्वारा क्रूरता साबित करने में नाकाम रहा। शीर्ष अदालत ने तलाक मंजूर करने के लिए संविधान के अनुच्छेद १४२ के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग किया और ‘‘पूर्ण न्याय’’ के लिए उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त किया।