हिन्दू यह सम्प्रदायवाची नहीं वरन् राष्ट्रवादी शब्द है- भैयाजी जोशी

इंदौर,आज दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा स्वतंत्रा दिवस की पूर्वसंध्या पर दीनदयाल उपाध्याय शताब्दी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद बनाम द्विराष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिया, अध्यक्षता क्षेत्र संघचालक,मध्य क्षेत्र अशोक सोहनी ने की। दीनदयाल शोक संस्थान के अध्यक्ष नकुलजी जैन, संस्था के सचिव विनोद द्विवेदी, अधिवक्ता हाईकोर्ट उपस्थित थे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा कि हिन्दू यह सम्प्रदायवाची नहीं वरन् राष्ट्रवादी शब्द है। सभी भारतीय सम्प्रदाय हिन्दू समाज के अंग हैं, मजहबांरित भारतीयों को भी हिन्दू समाज का वैसा ही अंग होना चाहिये जैसे सभी भारतीय साम्प्रदायों को मानने वाले लोग हैं। दुर्भाग्य से इस राष्ट्रीय एकात्मता के विचार को सम्प्रदायिकता का नाम दिया जाता है। यह एक अशास्त्रीय एवं राष्ट्रविघातक प्रस्थापना है। इस द्वैत का समुचित भाष्य अभी तक नहीं हो सका है। क्या यह राष्ट्रीय द्वैत है, यह उपासना पध्दति का द्वैत है, यह माजहबिक द्वैत है या यह सांस्कृतिक और सामाजिक द्वैत है क्या यह तथाकथित द्वैत एक नैसर्गिक वास्तविकता है, क्या यह द्वैत तथ्यात्मक वास्तविकता है या यह द्वैत एक कृत्रिम राजनैतिक दुरभिसंधि है। यह एक अवैज्ञानिक विचार है। यदि मजहबों से राष्ट्रीयता बनती तो भारत में तथा विश्व में कहीं भी राष्ट्र संज्ञा का विकास ही नहीं हो पाता।
नागरिकता को बदल सकती है राष्ट्रवाद नहीं बदल सकते है, राज्य बदलने से राष्ट्रीयता बदल जायेगी, राष्ट्र के प्रतिकल्पना नकारात्मक नहीं, सकारात्मक होती है, भारत में एक राष्ट्रवाद, राजनैतिकवाद व सांस्कृतिवाद के लोग है हमने भाषाओं को अलग-अलग इकाईयों में माना है राजनैतिक दृष्टि से कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा देश है। इस प्रकार विभाजन की बात करना सही नहीं है। हमसब के पूर्वज एक है, लोगों ने उसको जाति के आधार पर विभाजित किया है भारत में रहने वालें कुछ लोग भारत माता की जय बौलने से इनकार करते है।
प्रासंगिक रूप से इस विषय पर दीनदयालजी के संदर्भों को हमें स्मरण करना चाहिये। 1951 में जनसंघ के प्रथम अधिवेशन में उन्होंने प्रस्ताव रखा था, जिसमें उन्होंने आह्वान किया है हिन्दू समाज का राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है कि भारतीय जनजीवन के तथा अपने उन अंगों के भारतीयकरण का महान कार्य अपने हाथ में ले जो विदेशियों द्वारा स्वदेश पराभिमुख तथा प्रेरणा के लिये विदेशाभिमुख बना दिया गया है। हिन्दू समाज को चाहिए कि उन्हें स्नेहपूर्वक आत्मसात कर ले। हमारी भू-सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का अधिष्ठान अखंड भारत है। भारत-पाक व बांग्लादेश के परिसंघ के रूप में उसे स्वीकार किया जा सकता है। भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही भारतीय एकात्मता को प्रतिबिम्बित करने वाला समाजशास्त्रीय सत्य है। हमें इसका साक्षात्कार करना चाहिये।

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