भोपाल, बाघ, तेंदुआ, पेंगोलिन, भालू सहित अन्य जानवरों की हिफाजत के लिए वन विभाग अपने डॉग स्क्वॉड को विशेष ट्रेनिंग देगा। होशंगाबाद के मटकुली में इसके लिए डॉग ट्रेनिंग सेंटर खोला जा रहा है। जहां डॉग के गार्ड्स ही उनके ट्रेनर बनेंगे। विभाग के पास फिलहाल नौ डॉग हैं, जो टाइगर रिजर्व में सेवाएं दे रहे हैं। विभाग को दो स्वयं सेवी संस्थाओं (ट्रैफिक इंडिया और सेव अवर टाइगर) ने डॉग्स दिए हैं, जो वन अपराधियों को पकड़वाने और वन्यप्राणियों की सुरक्षा में विभाग की मदद करते हैं, लेकिन ये पुलिस द्वारा ट्रेंड हैं। इसलिए कई मामलों में सकारात्मक रिजल्ट नहीं दे पाते हैं। इसी कमी को दूर करने के लिए विभाग ने डॉग्स को नियमित ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया है। डॉग्स को रिफ्रेशर कोर्स कराए जाएंगे। उन्हें बाघ के अलावा पेंगोलिन, कछुआ, सेंड बोआ (मिट्टी का सांप), भालू, तेंदुआ, मोर, बारासिंघा, चीतल, सांभर, हिरण सहित अन्य वन्यप्राणियों की स्किन (चमड़ी) की गंध सुंघाई जाएगी। ताकि वे इन जानवरों को भी पहचान सकें और तस्करी जैसे मामलों में विभाग की मदद कर सकें।
विभाग के मुताबिक डॉग्स को हर तीन माह में ट्रेनिंग दी जाएगी। इस तरह अगले दो से तीन साल में ये डॉग्स पूरी तरह से वन्यप्राणी सुरक्षा और वन अपराध रोकने में कारगर हो जाएंगे। ट्रैफिक इंडिया संस्था ने तीन साल पहले विभाग को पांच जर्मन शेफर्ड डॉग्स दिए थे। इन्हें बाघ और तेंदुओं से जुड़े अपराधों के मामले में ट्रेंड किया गया है। ये वर्तमान में सतना, पेंच, जबलपुर, इंदौर और सागर जिलों में हैं। जबकि सेव अवर टाइगर संस्था ने चार जर्मन मेलोनाइज डॉग्स दिए थे, जो कि पेंच, पन्न्ा, कान्हा और संजय डुबरी टाइगर रिजर्व में रखे गए हैं। वाइल्ड लाइफ मुख्यालय का कहना है कि वह खुद डॉग्स नहीं खरीदेगा। यदि कोई संस्था डॉग्स देती है, तो हम लेंगे और उन्हें वन अपराध रोकने के लिए ट्रेनिंग देंगे। अफसर बताते हैं कि अभी ग्वालियर, सागर, जबलपुर आदि क्षेत्र में डॉग्स की जरूरत है। इस संबंध मं वाइल्ड लाइफ एपीसीसीएफ आरपी सिंह का कहना है कि मटकुली में ट्रेनिंग सेंटर शुरू कर रहे हैं। ताकि डॉग्स को वन्यप्राणियों और अपराधों को लेकर अपडेट रखा जा सके। अभी वे पुलिस की जरूरत के हिसाब से ट्रेंड हैं।