श्रीकृष्ण की मनमोहक लीलाओं को कुचिपुड़ी में उतारा

भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में सुश्री तृप्ति कुलकर्णी एवं साथी, इन्दौर द्वारा ‘उपशास्त्रीय गायन‘ तथा रतीश बाबू एवं साथी, भिलाई द्वारा ‘कुच्चीपुड़ी समूह नृत्य‘ का प्रदर्शन किया गया। शुभारंभ ‘उपशास्त्रीय गायन‘ सुश्री तृप्ति कुलकर्णी द्वारा किया गया, जो कि अल्पायु से ही संगीत की प्रारंभिक शिक्षा श्रीमती मंगलाताई सुर्वे और सुनील मसूरकर (सुशिष्य पं. बालासाहेब पुछ वाले) से प्राप्त की। संगीत की विद् परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने वाली सुश्री तृप्ति कुलकर्णी ने इन्दौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से कंठ संगीत में एम.ए. किया एवं स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
सुश्री कुलकर्णी ने गायन में श्री कृष्ण को स्मरण करते हुए, होरी चलो री सखी ब्रिज में देखन चलो री से प्रारंभ किया। इसके बाद उन्होंने अपने गायन में कई मनुभावक जैसे चैती, दादरा, कजरी एवं झूला की गीतों को प्रस्तुत किया। अन्त में सावन को ‘याद करते हुए ‘‘जा बैरी जा बदरा‘‘ ठुमरी को गाकर अपनी प्रस्तुति को समाप्त किया। सह कलाकार डाॅ. शुचिता चांदोरकर, कु. पूजा भालेराव, हारमोनियम में संगत दी निलाम्भ बलवडे, तबला पर पवन सेन ने दी।
दूसरी प्रस्तुति में रतीश बाबू एवं साथी भिलाई द्वारा ‘कुच्चीपुड़ी समूह नृत्य‘ का प्रदर्शन किया गया। इन्होंने पदमश्री अड़याद के. लक्ष्मण जी से भरतनाट्यम नृत्य तथा डाॅ. पी.रामादेवी एवं अनुपमा मोहन से कुच्चीपुड़ी नृत्य की प्रारभिक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने सर्वप्रथम अपने नृत्य का आरंभ गणेश स्तुति से करते हुए कृष्ण लीलाओं जैसे- उनके बचपन की शरारते, कृष्ण का नटखट-पन, विशालसर्प कालिया पर विजय प्राप्त कर खुशी से नृत्य करना, राधा के प्रति, अप्रतिम प्रेम, राधा से बिछोह का विरह, गोपिकाओं के साथ रासलीला आदि दर्शाया गया। इसके अलावा अगली प्रस्तुति में ब्रम्हांजलि, कीर्तनम्, कालिंग नर्तनम् तिल्लान, स्वाति तिरूनाल कृति एवं अंत की प्रस्तुति में कीर्तनम् की प्रस्तुति दी।

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