जबलपुर,शहर के कछपुरा मालगोदाम में, कृषि उपज मण्डी में, कलेक्ट्रेट और गोदामों में पानी खाई प्याज सड़ने लगी है। कछपुरा गोदाम में दुर्गन्ध मार रही प्याज को किसके आदेश से गली-गली, चौराहों-चौराहों ट्रक खड़े कराकर फ्री में बांटा गया। मुफ्त में बंट रही प्याज लेने के लिए सड़कों पर जाम लग गया। आम घरेलू उपभोक्ता को तो इतनी तादाद में प्याज नहीं लगती कि वह स्टाक करके रखे।
२ से चार किलो प्याज हफ्ते भर के लिए पर्याप्त हो जाती है। लेकिन सड़कों के किनारे लगने वाले छोटे मोटे ढाबे और चाट के ठेले लगाने वालों ने प्याज की लूट मचा दी। लोग हाथ ठेला, ऑटो लेकर पांच-पांच, दस-दस बोरी प्याज बटोरकर ले गए। किसी ने अपनी मोटर सायकिल में चार-पांच फेरे लगाए। अब सवाल यह उठ रहा है कि यह सड़ी गली प्याज सड़क किनारे लगने वाले ठेलों में पिसकर खाद्य सामग्री में मिला दी जाएगी, जो गरीबों के पेट में पहुंचेगी और कई तरह की बीमारियां पनपेंगी। बारिश के मौसम में संक्रमण, हैजा, डायरिया से महामारी मच सकती है। शहर में गढ़ाफाटक, रानीताल, दीनदयाल चौक जैसे कई खास जगहों पर ट्रक के ट्रक सड़ी प्याज लेकर खड़े हो गए और लोगों को बांटी गई। प्याज का मेंटेनेंस करने में सरकार पूरी तरह से फेल हो गई है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि लगभग २ हजार करोड़ रूपये की चपत प्याज खरीदी में सरकारी खजाने में आम जनता का ही पैसा जमा होता है, जिसे हायर, मध्यम श्रेणी के टेक्स पेयी ही अदा करते हैं। सरकार पर कर्ज बढ़ रहा है। इस कर्जे का ब्याज और कर्ज चुकाने का भार भी आखिरकार आम जनता पर ही पड़ता है। अभी मध्यप्रदेश का प्रत्येक नागरिक ३२ हजार रूपये के कर्ज में है। दरअसल, अधिकारियों और दलालों के गठजोड़ ने इस दुरूह स्थिति को बनाया। बेहतर होता कि सरकार पटवारी हल्का रिकार्ड के मुताबिक प्याज की बोनी करने वाले किसानों के खाते में डायरेक्ट सब्सिडी ट्रांसफर करके प्याज खरीद लेती तो ऐसे हालात नहीं बनते। मध्यप्रदेश में उज्जैन और देवास, मंदसौर, शाजापुर में ही प्याज की खेती सर्वाधिक होती है। प्रदेश में इतनी प्याज की पैदावार नहीं हो गई कि प्याज सड़ने लगे। जानकारों की मानें तो मध्यप्रदेश से लगे राजस्थान और महाराष्ट्र से बहुतायत में प्याज मध्यप्रदेश लाकर बेची गई। वजह वहां भी ४ रूपये किलो से अधिक प्याज नहीं बिक रही थी और यहां दलालनुमा व्यापारियों ने अधिकारियों की साठगांठ से राजस्थान और महाराष्ट्र की बार्डर पर ३ से ४ रूपये किलो में प्याज की खरीदी कर ली। बाद में यही प्याज फिर किसानों को कमीशन का लालच देकर पलटाई गई और फिर मध्यप्रदेश में ८ रूपये किलो बिकवाई गई। यही रीसायकिल चलती रही और मध्यप्रदेश में प्याज का अंबार लग गया। स्टोर के लिए व्यवस्था नहीं हो पाई। प्याज खुले में पड़ी रही। बारिश आ गई, प्याज सड़ने लगी। अब कहीं प्याज का पंचनामा ब्ानाकर उसे दफन किया जा रहा है तो कहीं बांटी जा रही है। इसके लिए भी परिवहन का खर्चा शासन को खर्च करना पड़ रहा है। उधर प्याज की ये हालत होने से व्यापारियों के भी बुरे हाल हैं। अब देवास, इंदौर, मंदसौर, उज्जैन, शाजापुर से प्याज नहीं मंगाकर व्यापारियों से कहा जा रहा है कि यहीं पर आकर प्याज खरीदें। इससे व्यापारियों के हाल किसानों से भी बुरे हो गए। थोक प्याज व्यापारी, जो कल तक २ से ३ लाख रूपये की प्याज रोजाना बेचा करते थे, आज उनके थोक व फुटकर काउंटर सूने हो गए। प्याज के व्यापारी २सौ रूपये रोज का मुनाफा भी नहीं कमा पा रहे हैं। जबलपुर मण्डी से शहडोल, अनूपपुर, नरसिंहपुर, कटनी, मण्डला, बालाघाट, छिंदवाड़ा प्याज भेजी जाती थी।