नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने नौकरशाही (सरकारी विभागों) में व्याप्त भ्रष्टाचार को कम करने के लिए एक अहम फैसला लिया है। केन्द्र सरकार ने ५० साल से अधिक पुराने कानून में संशोधन करते हुए सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार में फंसे होने के मामलों की जांच ६ महीने में पूरी करने की समय सीमा निर्धारित कर दी है। यह फैसला ऐसे मामलों की जांच में तेजी लाने के उद्देश्य से किया गया है। इनमें से अधिकतर मामले काफी समय से लंबित पड़े हैं। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने केंद्रीय लोक सेवाएं (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, १९६५ में संशोधन किया है और जांच के महत्वपूर्ण चरणों और जांच प्रक्रियाओं के लिए समय सीमा निर्धारित करने का फैसला किया है। संशोधित नियम के मुताबिक जांच प्राधिकरण को ६ महीने के अंदर जांच पूरी कर अपनी रिपोर्ट सौंप देनी चाहिए। इसमें कहा गया कि हालांकि अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा लिखित में पर्याप्त कारण बताए जाने पर अधिकतम ६ माह का जांच विस्तार दिया जा सकता है। इससे पहले जांच पूरी करने के लिए कोई समय-सीमा नहीं होती थी। नया नियम अखिल भारतीय सेवाओं (भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेना) और कुछ अन्य श्रेणियों के अधिकारियों को छोड़कर सभी श्रेणी के कर्मचारियों पर लागू होगा। बता दें कि हाल ही में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों, बीमा कंपनियों और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों से कहा था कि वे भ्रष्टाचार के लंबित मामलों की जांच में तेजी लाएं। भ्रष्टाचार विरोधी निकाय ने सभी विभागों के मुख्य सतर्कता अधिकारियों से लिखित में कहा है कि वे शिकायतों पर जांच रिपोर्टों में भी तेजी लाएं। सीवीसी सरकारी संगठनों में भ्रष्टाचार की शिकायतें जांच और रिपोर्ट के लिए संबंधित सीवीओ को भेजता है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल की अपेक्षा २०१६ में विभिन्न सरकारी विभागों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों में ६७ प्रतिशत की वृद्धि हुई और रेलवे इस सूची में शीर्ष पर है। संसद में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार निकाय को २०१६ में ४९,८४७ शिकायतें मिलीं, जबकि २०१५ में मिली २९,८३८ शिकायतों से ६७ प्रतिशत अधिक है।